ग़ज़ल Hindi Shayari

  • मिलकर जुदा हुए...

    मिलकर जुदा हुए तो न सोया करेंगे हम;
    एक दूसरे की याद में रोया करेंगे हम;

    आँसू छलक छलक के सतायेंगे रात भर;
    मोती पलक पलक में पिरोया करेंगे हम;

    जब दूरियों की आग दिलों को जलायेगी;
    जिस्मों को चाँदनी में भिगोया करेंगे हम;

    गर दे गया दग़ा हमें तूफ़ान भी "क़तील";
    साहिल पे कश्तियों को डूबोया करेंगे हम।
    ~ Qateel Shifai
  • ले चला जान मेरी...

    ले चला जान मेरी रूठ के जाना तेरा;
    ऐसे आने से तो बेहतर था न आना तेरा;

    अपने दिल को भी बताऊँ न ठिकाना तेरा;
    सब ने जाना जो पता एक ने जाना तेरा;

    तू जो ऐ ज़ुल्फ़ परेशान रहा करती है;
    किस के उजड़े हुए दिल में है ठिकाना तेरा;

    ये समझ कर तुझे ऐ मौत लगा रखा है;
    काम आता है बुरे वक़्त में आना तेरा;

    अपनी आँखों में भी कौँध गई बिजली सी;
    हम न समझे कि ये आना है कि जाना तेरा;

    'दाग़' को यूँ वो मिटाते हैं ये फ़र्माते हैं;
    तू बदल डाल हुआ नाम पुराना तेरा।
    ~ Daagh Dehlvi
  • बदला न अपने आपको...

    बदला न अपने आपको जो थे वही रहे;
    मिलते रहे सभी से अजनबी रहे;

    अपनी तरह सभी को किसी की तलाश थी;
    हम जिसके भी क़रीब रहे दूर ही रहे;

    दुनिया न जीत पाओ तो हारो न खुद को तुम;
    थोड़ी बहुत तो जे़हन में नाराज़गी रहे;

    गुज़रो जो बाग़ से तो दुआ माँगते चलो;
    जिसमें खिले हैं फूल वो डाली हरी रहे;

    हर वक़्त हर मकाम पे हँसना मुहाल है;
    रोने के वास्ते भी कोई बेकली रहे।
    ~ Nida Fazli
  • प्यास वो दिल की...

    प्यास वो दिल की बुझाने कभी आया भी नहीं;
    कैसा बादल है जिसका कोई साया भी नहीं;

    बेरुख़ी इस से बड़ी और भला क्या होगी;
    एक मुद्दत से हमें उस ने सताया भी नहीं;

    रोज़ आता है दर-ए-दिल पे वो दस्तक देने;
    आज तक हमने जिसे पास बुलाया भी नहीं;

    सुन लिया कैसे ख़ुदा जाने ज़माने भर ने;
    वो फ़साना जो कभी हमने सुनाया भी नहीं;

    तुम तो शायर हो क़तील और वो इक आम सा शख़्स;
    उस ने चाहा भी तुझे और जताया भी नहीं।
    ~ Qateel Shifai
  • प्यास वो दिल की...

    प्यास वो दिल की बुझाने कभी आया भी नहीं;
    कैसा बादल है जिसका कोई साया भी नहीं;

    बेरुख़ी इस से बड़ी और भला क्या होगी;
    एक मुद्दत से हमें उस ने सताया भी नहीं;

    रोज़ आता है दर-ए-दिल पे वो दस्तक देने;
    आज तक हमने जिसे पास बुलाया भी नहीं;

    सुन लिया कैसे ख़ुदा जाने ज़माने भर ने;
    वो फ़साना जो कभी हमने सुनाया भी नहीं;

    तुम तो शायर हो क़तील और वो इक आम सा शख़्स;
    उस ने चाहा भी तुझे और जताया भी नहीं।
    ~ Qateel Shifai
  • दिल मेरा जिस से...

    दिल मेरा जिस से बहलता कोई ऐसा न मिला;
    बुत के बन्दे तो मिले अल्लाह का बन्दा न मिला;

    बज़्म-ए-याराँ से फिरी बाद-ए-बहारी मायूस;
    एक सर भी उसे आमादा-ए-सौदा न मिला;

    गुल के ख़्वाहाँ तो नज़र आये बहुत इत्रफ़रोश;
    तालिब-ए-ज़मज़म-ए-बुलबुल-ए-शैदा न मिला;

    वाह क्या राह दिखाई हमें मुर्शद ने;
    कर दिया काबे को गुम और कलीसा न मिला;

    सय्यद उट्ठे जो गज़ट ले के तो लाखों लाये;
    शैख़ क़ुरान दिखाता फिरा पैसा न मिला।
    ~ Akbar Allahabadi
  • सुबह रो-रो के...

    सुबह रो-रो के शाम होती है;...
    शब तड़प कर तमाम होती है;

    सामने चश्म-ए-मस्त साक़ी के;
    किस को परवाह-ए-जाम होती है;

    कोई ग़ुंचा खिला के बुल-बुल को;
    बेकली ज़र-ए-दाम होती है;

    हम जो कहते हैं कुछ इशारों से;
    ये ख़ता ला-कलाम होती है।
    ~ Bahadur Shah Zafar
  • कठिन है राहगुज़र...

    कठिन है राहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो;
    बहुत बड़ा है सफ़र थोड़ी दूर साथ चलो;

    तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है;
    मैं जानता हूँ मगर थोड़ी दूर साथ चलो;

    नशे में चूर हूँ मैं भी तुम्हें भी होश नहीं;
    बड़ा मज़ा हो अगर थोड़ी दूर साथ चलो;

    ये एक शब की मुलाक़ात भी ग़नीमत है;
    किसे है कल की ख़बर थोड़ी दूर साथ चलो;

    अभी तो जाग रहे हैं चिराग़ राहों के;
    अभी है दूर सहर थोड़ी दूर साथ चलो;

    तवाफ़-ए-मन्ज़िल-ए-जानाँ हमें भी करना है;
    'फ़राज़' तुम भी अगर थोड़ी दूर साथ चलो।
    ~ Ahmad Faraz
  • ले चला जान मेरी...

    ले चला जान मेरी रूठ के जाना तेरा;
    ऐसा आने से तो बेहतर है ​ना ​आना तेरा;

    अपने दिल को भी बताऊँ ​ना ​ठिकाना तेरा;
    सब ने जाना, जो पता एक ने जाना तेरा;

    तु जो ऐ ज़ुल्फ़, परेशान रहा करती है;
    किसके उजड़े हुए दिल में है ठिकाना तेरा;

    यह समझ कर तुझे ऐ मौत लगा रखा है;
    काम आता है बुरे वक़्त में आना तेरा;

    अपनी आँखों में भी कौंध गई बिजली सी;
    हम न समझे कि ये आना है कि जाना तेरा;

    'दाग' को यूँ वो मिटाते हैं ये फ़र्माते हैं;
    तो बदल डाल हुआ नाम पुराना तेरा।
    ~ Daagh Dehlvi
  • ​ये आलम शौक़...

    ये आलम शौक़ का देखा न जाये;
    वो बुत है या ख़ुदा देखा न जाये;

    ये किन नज़रों से तुम ने आज देखा;
    के तेरा देखना ​देखा ​ना जाये;

    हमेशा के लिये मुझ से बिछड़ जा;
    ये मन्ज़र बारहा देखा न जाये;

    ग़लत है जो सुना पर आज़मा कर;
    तुझे ऐ बावफ़ा देखा न जाये;

    ये महरूमी नहीं पास-ए-वफ़ा है;
    कोई तेरे सिवा देखा न जाये;

    यही तो आश्ना बनते हैं आख़िर;
    कोई नाआश्ना देखा न जाये;

    'फ़राज़' अपने सिवा है कौन तेरा;
    तुझे तुझ से जुदा देखा न जाये।
    ~ Ahmad Faraz