मुझे लगता है नाराज़गी अब भी बाकी है; हाथ थामा तो उसने दबाया नहीं! |
माना मौसम भी बदलते हैं मगर धीरे-धीरे; पर दोस्त तेरे बदलने की रफ़्तार से तो हवाएं भी हैरान हैं! |
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ; आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ! |
कौन कहता है हम झूठ नहीं बोलते; एक बार खैरियत तो पूछ कर देखिये! |
बहुत अंदर तक जला देती हैं; वो शिकायतें जो बयां नहीं होती! |
राज़ मेरे पहुँच गए हैं गैरों तक; मशवरा तो मैंने अपनों से किया था! |
बहुत कम बोलना अब कर दिया है; कई मौक़ों पे ग़ुस्सा भी पिया है! |
सब्र आ जाए इस की क्या उम्मीद; मैं वही, दिल वही है तू है वही! |
दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है; लम्बी है गम की शाम मगर शाम ही तो है! |
कुछ तुम ले गये, कुछ ज़माना; इतना सकून हम लाते भी कहाँ से! |