गिला शिकवा Hindi Shayari

  • उम्र गुज़रेगी इम्तिहान में क्या,</br>
दाग़ ही देंगे मुझ को दान में क्या;</br>
मेरी हर बात बे-असर ही रही,</br>
नक़्स है कुछ मेरे बयान में क्या!Upload to Facebook
    उम्र गुज़रेगी इम्तिहान में क्या,
    दाग़ ही देंगे मुझ को दान में क्या;
    मेरी हर बात बे-असर ही रही,
    नक़्स है कुछ मेरे बयान में क्या!
    ~ Jaun Elia
  • तुम्हारे ख़त में नया एक सलाम किस का था,</br<
न था रक़ीब तो आख़िर वो नाम किस का था;</br<
वो क़त्ल कर के मुझे हर किसी से पूछते हैं,</br<
ये काम किस ने किया है ये काम किस का था!Upload to Facebook
    तुम्हारे ख़त में नया एक सलाम किस का था,
    ~ Daagh Dehlvi
  • सुला कर तेज़ धारों को किनारो तुम न सो जाना;</br>
रवानी ज़िंदगानी है तो धारो तुम न सो जाना!Upload to Facebook
    सुला कर तेज़ धारों को किनारो तुम न सो जाना;
    रवानी ज़िंदगानी है तो धारो तुम न सो जाना!
    ~ Kausar Siwani
  • हम को किस के गम ने मारा ये कहानी फिर सही;</br>
किस ने तोडा ये दिल हमारा ये कहानी फिर सही!Upload to Facebook
    हम को किस के गम ने मारा ये कहानी फिर सही;
    किस ने तोडा ये दिल हमारा ये कहानी फिर सही!
    ~ Masroor Anwar
  • वही कारवाँ वही रास्ते वही ज़िंदगी वही मरहले;</br>
मगर अपने अपने मक़ाम पर कभी तुम नहीं कभी हम नहीं!Upload to Facebook
    वही कारवाँ वही रास्ते वही ज़िंदगी वही मरहले;
    मगर अपने अपने मक़ाम पर कभी तुम नहीं कभी हम नहीं!
    ~ Shakeel Badayuni
  • दिन रात मय-कदे में गुज़रती थी ज़िंदगी;</br>
'अख़्तर' वो बे-ख़ुदी के ज़माने किधर गए!</br>
*मय-कदे: शराबख़ानाUpload to Facebook
    दिन रात मय-कदे में गुज़रती थी ज़िंदगी;
    'अख़्तर' वो बे-ख़ुदी के ज़माने किधर गए!
    *मय-कदे: शराबख़ाना
    ~ Akhtar Sheerani
  • चार दिन की ज़िन्दगी,<br />
मैं किस से कतरा के चलूँ, <br />
ख़ाक़ हूँ, मैं ख़ाक़ पर,<br />
क्या ख़ाक़ इतरा के चलूँ! <br />Upload to Facebook
    चार दिन की ज़िन्दगी,
    मैं किस से कतरा के चलूँ,
    ख़ाक़ हूँ, मैं ख़ाक़ पर,
    क्या ख़ाक़ इतरा के चलूँ!
  • धूप की गरमी से ईंटें पक गयीं फल पक गए;</br>
एक हमारा जिस्म था 'अख़्तर' जो कच्चा रह गया!Upload to Facebook
    धूप की गरमी से ईंटें पक गयीं फल पक गए;
    एक हमारा जिस्म था 'अख़्तर' जो कच्चा रह गया!
  • सिर्फ़ एक क़दम उठा था ग़लत राह-ए-शौक़ में;</br>
मंज़िल तमाम उम्र मुझे ढूँढती रही!Upload to Facebook
    सिर्फ़ एक क़दम उठा था ग़लत राह-ए-शौक़ में;
    मंज़िल तमाम उम्र मुझे ढूँढती रही!
    ~ Abdul Hameed Adam
  • तुम मेरे लिए अब कोई इल्ज़ाम न ढूंढो;</br>
चाहा था तुम्हें एक यही इल्ज़ाम बहुत है!Upload to Facebook
    तुम मेरे लिए अब कोई इल्ज़ाम न ढूंढो;
    चाहा था तुम्हें एक यही इल्ज़ाम बहुत है!
    ~ Sahir Ludhianvi