ख़्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता है; ऐसी तन्हाई कि मर जाने को जी चाहता है!x |
हो जाएगी जब तुम से शनासाई ज़रा और; बढ़ जाएगी शायद मेरी तन्हाई ज़रा और! |
ये कैफ़ियत है मेरी जान अब तुझे खो कर; कि हम ने ख़ुद को भी पाया नहीं बहुत दिन से! |
रौशनी को तीरगी का क़हर बन कर ले गया; आँख में महफ़ूज़ थे जितने भी मंज़र ले गया! * तीरगी- अँधेरा |
अभी हिज्र दामन में उतरा नहीं है; मगर वस्ल का भी तो चर्चा नहीं है! *हिज्र- जुदाई |
तन्हाई की आग़ोश में था सुबह से पहले; मिलती रही उल्फ़त की सज़ा सुबह से पहले! |
अपनी तन्हाई को आबाद तो कर सकते हैं; हम तुझे मिल न सकें याद तो कर सकते हैं! |
तुम ख़फ़ा हो के हम को छोड़ चले; अब अजल से है सामना अपना! |
धूप बढ़ते ही जुदा हो जाएगा; साया-ए-दीवार भी दीवार से! |
तुझ से बिछड़ के दर्द तेरा हम-सफ़र रहा; मैं राह-ए-आरज़ू में अकेला कभी न था! |