न जख्म भरे, न शराब सहारा हुई; न वो वापस लौटी न मोहब्बत दोबारा हुई! |
भीड़ में भी तन्हा रहना मुझको सिखा दिया, तेरी मोहब्बत ने दुनिया को झूठा कहना सिखा दिया; किसी दर्द या ख़ुशी का एहसास नहीं है अब तो, सब कुछ ज़िन्दगी ने चुप-चाप सहना सिखा दिया! |
परेशान करते थे मेरे सवाल तुमको; तो बताओ पसंद आई खामोशी मेरी! |
तुम्हें कितनी मोहब्बत है... मालूम नहीं; मुझे लोग आज भी तेरी क़सम दे कर मना लेते हैं! |
काश कि खुदा ने दिल शीशे के बनाए होते; तोड़ने वाले के हाथों में ज़ख्म तो आए होते! |
गुमसुम से हो गए हैं आजकल सारे अल्फ़ाज मेरे; लगता है किसी चाहने वाले ने इन्हें पढ़ना छोड़ दिया! |
फूल शबनम में डूब जाते है, ज़ख्म मरहम में डूब जाते है; जब आते है ख़त तेरे, हम तेरे ग़म में डूब जाते है! |
चुपचाप गुजार देंगे तेरे बिना भी ये जिंदगी; लोगों को सिखा देंगे मोहब्बत ऐसे भी होती है! |
काँटों से घिरा रहता है; फिर भी गुलाब खिला रहता है! |
हज़ारों उलझनें राहों में और कोशिशें बेहिसाब; इसी का नाम ज़िन्दगी, चलते रहिये जनाब! |