दर्द Hindi Shayari

  • बेनाम सा यह दर्द ठहर क्यों नही जाता;<br />
जो बीत गया है वो गुज़र क्यों नही जाता;<br />
वो एक ही चेहरा तो नही सारे जहाँ मैं;<br />
जो दूर है वो दिल से उतर क्यों नही जाता।Upload to Facebook
    बेनाम सा यह दर्द ठहर क्यों नही जाता;
    जो बीत गया है वो गुज़र क्यों नही जाता;
    वो एक ही चेहरा तो नही सारे जहाँ मैं;
    जो दूर है वो दिल से उतर क्यों नही जाता।
  • आओ किसी शब मुझे टूट के बिखरता देखो;<br />
मेरी रगों में ज़हर जुदाई का उतरता देखो;<br />
किस किस अदा से तुझे माँगा है खुदा से;<br />
आओ कभी मुझे सजदों में सिसकता देखो।Upload to Facebook
    आओ किसी शब मुझे टूट के बिखरता देखो;
    मेरी रगों में ज़हर जुदाई का उतरता देखो;
    किस किस अदा से तुझे माँगा है खुदा से;
    आओ कभी मुझे सजदों में सिसकता देखो।
  • किसी ने यूँ ही पूछ लिया हमसे कि दर्द की कीमत क्या है;<br />
हमने हँसते हुए कहा, `पता नहीं... कुछ अपने मुफ्त में दे जाते हैं।Upload to Facebook
    किसी ने यूँ ही पूछ लिया हमसे कि दर्द की कीमत क्या है;
    हमने हँसते हुए कहा, "पता नहीं... कुछ अपने मुफ्त में दे जाते हैं।
  • फुर्सत किसे है ज़ख्मों को सरहाने की;
    निगाहें बदल जाती हैं अपने बेगानों की;
    तुम भी छोड़कर चले गए हमें;
    अब तम्मना न रही किसी से दिल लगाने की।
  • परछाइयों के शहर की तन्हाईयाँ ना पूछ;
    अपना शरीक-ए-ग़म कोई अपने सिवा ना था।
    ~ Mumtaz Rashid
  • जब रूह किसी बोझ से थक जाती है;<br />
एहसास की लौ और भी बढ़ जाती है;<br />
मैं बढ़ता हूँ ज़िन्दगी की तरफ लेकिन;<br />
ज़ंजीर सी पाँव में छनक जाती है।Upload to Facebook
    जब रूह किसी बोझ से थक जाती है;
    एहसास की लौ और भी बढ़ जाती है;
    मैं बढ़ता हूँ ज़िन्दगी की तरफ लेकिन;
    ज़ंजीर सी पाँव में छनक जाती है।
  • दिल की हालात बताई नहीं जाती;<br />
हमसे उनकी चाहत छुपाई नहीं जाती;<br />
बस एक याद बची है उनके चले जाने के बाद;<br />
हमसे तो वो याद भी दिल से निकाली नहीं जाती।Upload to Facebook
    दिल की हालात बताई नहीं जाती;
    हमसे उनकी चाहत छुपाई नहीं जाती;
    बस एक याद बची है उनके चले जाने के बाद;
    हमसे तो वो याद भी दिल से निकाली नहीं जाती।
  • उन गलियों से जब गुज़रे तो मंज़र अजीब था;<br />
दर्द था मगर वो दिल के करीब था;<br />
जिसे हम ढूँढ़ते थे अपनी हाथों की लकीरों में;<br />
वो किसी दूसरे की किस्मत किसी और का नसीब था।Upload to Facebook
    उन गलियों से जब गुज़रे तो मंज़र अजीब था;
    दर्द था मगर वो दिल के करीब था;
    जिसे हम ढूँढ़ते थे अपनी हाथों की लकीरों में;
    वो किसी दूसरे की किस्मत किसी और का नसीब था।
  • निकले हम कहाँ से और किधर निकले;
    हर मोड़ पे चौंकाए ऐसा अपना सफ़र निकले;
    तूने समझाया क्या रो-रो के अपनी बात;
    तेरे हमदर्द भी लेकिन बड़े बे-असर निकले।
  • लगता नहीं है दिल मेरा उजड़े दयार में;
    किसकी बनी है आलम-ए-ना पैदार में;
    कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें;
    इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दागदार में।
    ~ Bahadur Shah Zafar