बेनाम सा यह दर्द ठहर क्यों नही जाता; जो बीत गया है वो गुज़र क्यों नही जाता; वो एक ही चेहरा तो नही सारे जहाँ मैं; जो दूर है वो दिल से उतर क्यों नही जाता। |
आओ किसी शब मुझे टूट के बिखरता देखो; मेरी रगों में ज़हर जुदाई का उतरता देखो; किस किस अदा से तुझे माँगा है खुदा से; आओ कभी मुझे सजदों में सिसकता देखो। |
किसी ने यूँ ही पूछ लिया हमसे कि दर्द की कीमत क्या है; हमने हँसते हुए कहा, "पता नहीं... कुछ अपने मुफ्त में दे जाते हैं। |
फुर्सत किसे है ज़ख्मों को सरहाने की; निगाहें बदल जाती हैं अपने बेगानों की; तुम भी छोड़कर चले गए हमें; अब तम्मना न रही किसी से दिल लगाने की। |
परछाइयों के शहर की तन्हाईयाँ ना पूछ; अपना शरीक-ए-ग़म कोई अपने सिवा ना था। |
जब रूह किसी बोझ से थक जाती है; एहसास की लौ और भी बढ़ जाती है; मैं बढ़ता हूँ ज़िन्दगी की तरफ लेकिन; ज़ंजीर सी पाँव में छनक जाती है। |
दिल की हालात बताई नहीं जाती; हमसे उनकी चाहत छुपाई नहीं जाती; बस एक याद बची है उनके चले जाने के बाद; हमसे तो वो याद भी दिल से निकाली नहीं जाती। |
उन गलियों से जब गुज़रे तो मंज़र अजीब था; दर्द था मगर वो दिल के करीब था; जिसे हम ढूँढ़ते थे अपनी हाथों की लकीरों में; वो किसी दूसरे की किस्मत किसी और का नसीब था। |
निकले हम कहाँ से और किधर निकले; हर मोड़ पे चौंकाए ऐसा अपना सफ़र निकले; तूने समझाया क्या रो-रो के अपनी बात; तेरे हमदर्द भी लेकिन बड़े बे-असर निकले। |
लगता नहीं है दिल मेरा उजड़े दयार में; किसकी बनी है आलम-ए-ना पैदार में; कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें; इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दागदार में। |