दर्द-ओ-ग़म दिल की तबीयत बन गए; अब यहाँ आराम ही आराम है! |
सुन चुके जब हाल मेरा ले के अंगड़ाई कहा; किस ग़ज़ब का दर्द ज़ालिम तेरे अफ़्साने में था! |
मैं रोना चाहता हूँ ख़ूब रोना चाहता हूँ मैं; फिर उस के बाद गहरी नींद सोना चाहता हूँ मैं! |
अज़ाब होती हैं अक्सर शबाब की घड़ियाँ; गुलाब अपनी ही ख़ुश्बू से डरने लगते हैं! |
मेरी क़िस्मत में ग़म अगर इतना था; दिल भी या-रब कई दिए होते! |
वो अक्स बनके मेरी चश्म-ए-तर में रहता है; अजीब शख़्स है पानी के घर में रहता है! |
दर्द हो दिल में तो दवा कीजिये; और जो दिल ही न हो तो क्या कीजिये! |
कभी इश्क़ करो और फिर देखो इस आग में जलते रहने से; कभी दिल पर आँच नहीं आती कभी रंग ख़राब नहीं होता! |
बहार आए तो मेरा सलाम कह देना; मुझे तो आज तलब कर लिया है सहरा ने! |
आज की रात भी तन्हा ही कटी; आज के दिन भी अंधेरा होगा! |