ज़िक्र जब छिड़ गया क़यामत का; बात पहुँची तेरी जवानी तक! |
हुस्न यूँ इश्क़ से नाराज़ है अब; फूल ख़ुश्बू से ख़फ़ा हो जैसे! |
हसीन तेरी आँखें हसीन तेरे आँसू; यहीं डूब जाने को जी चाहता है! |
इतने हिजाबों पर तो ये आलम है हुस्न का; क्या हाल हो जो देख लें पर्दा उठा के हम! |
इलाही कैसी कैसी सूरतें तूने बनाई हैं; कि हर सूरत कलेजे से लगा लेने के क़ाबिल है! * इलाही: ख़ुदा |
उस के होंठों पे रख के होंठ अपने; बात ही हम तमाम कर रहे हैं! |
सुना है उस के बदन की तराश ऐसी है; कि फूल अपनी क़बाएँ कतर के देखते हैं! |
क्यों परखते हो सवालों से जवाबों को 'अदीम'; होंठ अच्छे हों तो समझो कि सवाल अच्छा है! |
आँखें साक़ी की जब से देखी हैं; हम से दो घूँट पी नहीं जाती! |
इतना सच बोल कि होंठों का तबस्सुम न बुझे; रौशनी ख़त्म न कर आगेअँधेरा होगा! * तबस्सुम: मुस्कुराहट, मुस्कान |