दर्द-ओ-ग़म दिल की तबियत बन गए; अब यहाँ आराम ही आराम है! |
दर्द आँखों से निकला तो सबने बोला कायर है ये, जब दर्द लफ़्ज़ों से निकला तो सब बोले शायर है ये। |
जरा तमीज़ से बटोरना बुझे दियों को दोस्तों, इन्होंने कल अमावस की अन्धेरी रात में हमें रौशनी दी थी; किसी और को जलाकर खुश होना अलग बात है, इन्होंने तो ख़ुद को जलाकर हमें ख़ुशी दी थी। |
ऐ मौत आ के हमको खामोश तो कर गयी तू; मगर सदियों दिलों के अंदर, हम गूंजते रहेंगे! |
यूँ तो ऐ ज़िंदगी तेरे सफर से शिकायतें बहुत थी; मगर दर्द जब दर्ज कराने पहुँचे तो कतारें बहुत थी। |
यह भी एक ज़माना देख लिया है हम ने; दर्द जो सुनाया अपना तो तालियां बज उठीं। |
फलक देता है जिसको ऐश उसको गम भी देता है; जहाँ बजते हैं नक्कारे, वहीं मातम भी होते हैं। फलक - आकाश, आसमान, अर् |
वो शायर होते हैं जो शायरी करते हैं; हम तो बदनाम से लोग हैं, बस दर्द लिखते हैं। |
जिंदगी इतना दर्द नहीं देती कि मरने को जी चाहे; बस लोग इतने दर्द दे जाते हैं कि, जीने को दिल नहीं करता। |
आदत बदल सी गई है वक़्त काटने की; हिम्मत ही नहीं होती अपना दर्द बांटने की। |