वो ज़हर देता तो सब की निगह में आ जाता; सो ये किया कि मुझे वक़्त पे दवाएँ न दीं! |
वो जिस घमंड से बिछड़ा गिला तो इस का है; कि सारी बात मोहब्बत में रख-रखाव की थी! |
ख़फ़ा हैं फिर भी आ कर छेड़ जाते हैं तसव्वुर में; हमारे हाल पर कुछ मेहरबानी अब भी होती है! *तसव्वुर: कल्पना |
झूठ पर उस के भरोसा कर लिया; धूप इतनी थी कि साया कर लिया! |
मैं वो सहरा जिसे पानी की हवस ले डूबी; तू वो बादल जो कभी टूट के बरसा ही नहीं! *सहरा: रेगिस्तान |
अब तक दिल-ए-ख़ुश-फ़हम को तुझ से हैं उम्मीदें; ये आख़िरी शमएँ भी बुझाने के लिए आ! *शमएँ: मोमबत्ती |
राह में बैठा हूँ मैं तुम संग-ए-रह समझो मुझे; आदमी बन जाऊँगा कुछ ठोकरें खाने के बाद! |
कोई हलचल है न आहट न सदा है कोई; दिल की दहलीज़ पे चुप-चाप खड़ा है कोई! *सदा: आवाज़/ पुकार |
वो पूछता था मेरी आँख भीगने का सबब; मुझे बहाना बनाना भी तो नहीं आया! |
तन्हाई का एक और मज़ा लूट रहा हूँ; मेहमान मेरे घर में बहुत आए हुए हैं! |