वह अफसाना जिसे अंजाम तक, लाना न हो मुमकिन; उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर, छोड़ना अच्छा। |
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में; तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में। |
वो बात बात पे देता है परिंदों की मिसाल; साफ़ साफ़ नहीं कहता मेरा शहर ही छोड़ दो। |
उन्हें सआदते-मंजिल-रसी नसीब क्या होगी; वह पाँव जो राहे-तलब में डगमगा न सके। अर्थ: 1. सआदते - प्रताप, तेज, इकबाल 2. रसी - मंजिल की प्राप्ति, मंजिल तक पहुंच 3. राहे-तलब - रास्ते की खोज |
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो;>br/> न जाने किस गली में जिंदगी की शाम हो जाए। |
चलो माना तुम्हारी आदत है तडपाना; मगर जरा सोचो अगर कोई मर गया तो! |
आज कैसी हवा चली ऐ 'फिराक'; आँख बेइख्तियार भर आई। |
मैं एक उलझी सी पहेली हूँ; खुद की सुलझी सी सहेली हूँ; चाँदनी रात में सपनो को बुनती हूँ; दिन के उजाले में उनको ढूंढती हूँ! |
अपना गम किस तरह से बयान करूँ, आग लग जायेगी इस जमाने में। |
किन लफ्ज़ो में बयां करूँ अपने दर्द को; सुनने वाले तो बहुत हैं समझने वाला कोई नहीं! |