तेरी आँखों का कुछ क़ुसूर नहीं; हाँ मुझ ही को ख़राब होना था! |
देखने के लिए सारा आलम भी कम; चाहने के लिए एक चेहरा बहुत! |
टूट पड़ती थीं घटाएँ जिन की आँखें देख कर; वो भरी बरसात में तरसे हैं पानी के लिए! |
न पूछो हुस्न की तारीफ़ हम से; मोहब्बत जिस से हो बस वो हसीं है! |
ख़ुदा बचाए तेरी मस्त मस्त आँखों से: फ़रिश्ता हो वो भी बहक जाए आदमी क्या है! |
अदाएँ देखने बैठे हो क्या आईने में अपनी; दिया है जिस ने तुम जैसे को दिल उस का जिगर देखो! |
कुछ नज़र आता नहीं उस के तसव्वुर के सिवा; हसरत-ए-दीदार ने आँखों को अंधा कर दिया! |
आज उस ने हँस के यूँ पूछा मिज़ाज; उम्र भर के रंज-ओ-ग़म याद आ गए! |
पर्दा तुम्हारे रुख़ से हटाना पड़ा मुझे; यूँ अपनी हसरतों को जगाना पड़ा मुझे! |
मुस्कुराना भी क्या ग़ज़ब है तेरा; जैसे बिजली चमक गयी कोई! |