इक साल गया इक साल नया है आने को; पर वक़्त का अब भी होश नहीं दीवाने को! |
तारीख़ें भी जवान हो रही हैं; सुना है कैलेंडर को बीसवाँ साल लग रहा है! |
तजुर्बे ने शेरों को खामोश रहना सिखाया है; क्योंकि दहाड़ कर शिकार नहीं किया जाता! |
इंसान की अकड़ वाजिब है जनाब, पैसा आने पर तो बटुआ भी फूल जाता है! |
हवा को गुमान था अपने आज़ाद होने का; किसी ने उसे भी गुबारे में कैद कर बेच दिया। |
वो आज मशहूर हो गए जो कभी काबिल न थे; और मंजिले उनको मिली जो दौड़ में कभी शामिल न थे! |
न इब्तिदा की ख़बर है न इंतिहा मालूम; रहा ये वहम कि हम हैं सो वो भी क्या मालूम! |
परख से कब जाहिर हुई शख्सियत किसी की; हम तो बस उन्हीं के हैं, जिन्हें हम पर यकीन है! |
ख़िज़ां की रुत में गुलाब लहजा बनाके रखना, कमाल ये है; हवा की ज़द पे दिया जलाना, जला के रखना, कमाल ये है! ख़िज़ां - पतझड़ |
रिश्तों को जेबों में नहीं हुजूर दिलों में रखिये; क्योंकि वक्त से शातिर कोई जेब कतरा नहीं होता! |