गिला शिकवा Hindi Shayari

  • किया है प्यार जिसे हमने ज़िन्दगी की तरह;
    वो आशना भी मिला हमसे अजनबी की तरह;
    किसे ख़बर थी बढ़ेगी कुछ और तारीकी;
    छुपेगा वो किसी बदली में चाँदनी की तरह।
    ~ Qateel Shifai
  • गर्मिये हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं;<br />
हम चिरागों की तरह शाम से जल जाते हैं;<br />
शमा जलती है जिस आग में नुमाइश के लिए;<br />
हम उसी आग में गुमनाम से जल जाते हैं;<br />
जब भी आता है तेरा नाम मेरे नाम के साथ;<br />
जाने क्यों लोग मेरे नाम से जल जाते हैं।Upload to Facebook
    गर्मिये हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं;
    हम चिरागों की तरह शाम से जल जाते हैं;
    शमा जलती है जिस आग में नुमाइश के लिए;
    हम उसी आग में गुमनाम से जल जाते हैं;
    जब भी आता है तेरा नाम मेरे नाम के साथ;
    जाने क्यों लोग मेरे नाम से जल जाते हैं।
  • वादा करके निभाना भूल जाते हैं;<br />
लगा कर आग फिर वो बुझाना भूल जाते हैं;<br />
ऐसी आदत हो गयी है अब तो सनम की;<br />
रुलाते तो हैं मगर मनाना भूल जाते हैं।Upload to Facebook
    वादा करके निभाना भूल जाते हैं;
    लगा कर आग फिर वो बुझाना भूल जाते हैं;
    ऐसी आदत हो गयी है अब तो सनम की;
    रुलाते तो हैं मगर मनाना भूल जाते हैं।
  • सुनो एक बार और मोहब्बत करनी है तुमसे;<br />
लेकिन इस बार बेवफाई हम करेंगे।Upload to Facebook
    सुनो एक बार और मोहब्बत करनी है तुमसे;
    लेकिन इस बार बेवफाई हम करेंगे।
  • ये मंजिले मुझे रास आती नहीं,<br />
ऐ रास्तो मुझे अपना हमसफ़र बना लो।Upload to Facebook
    ये मंजिले मुझे रास आती नहीं,
    ऐ रास्तो मुझे अपना हमसफ़र बना लो।
  • मुझ को शिकस्त-ए-दिल का मज़ा याद आ गया;
    तुम क्यों उदास हो गए क्या याद आ गया;
    कहने को ज़िन्दगी थी बहुत मुख्तसर मगर;
    कुछ यूँ बसर हुई कि खुदा याद आ गया।
    ~ Khumar Barabankvi
  • तेरे पास आने को जी चाहता है;
    फिर से दर्द सहने को जी चाहता है;
    आज़मा चुके हैं अब ज़माने को हम;
    बस तुझे आज़माने को जी चाहता है।
  • हम भी बिकने गए थे बाज़ार-ऐ-इश्क में;
    क्या पता था वफ़ा करने वालों को लोग ख़रीदा नहीं करते।
  • जिस से चाहा था, बिखरने से बचा ले मुझको;<br />
कर गया तुन्द हवाओं के हवाले मुझ को;<br />
मैं वो बुत हूँ कि तेरी याद मुझे पूजती है;<br />
फिर भी डर है ये कहीं तोड़ न डाले मुझको।Upload to Facebook
    जिस से चाहा था, बिखरने से बचा ले मुझको;
    कर गया तुन्द हवाओं के हवाले मुझ को;
    मैं वो बुत हूँ कि तेरी याद मुझे पूजती है;
    फिर भी डर है ये कहीं तोड़ न डाले मुझको।
    ~ Zafar Iqbal
  • कोई चला गया दूर तो क्या करें;
    कोई मिटा गया सब निशान तो क्या करें;
    याद आती है अब भी उनकी हमें हद से ज्यादा;
    मगर वो याद ना करें तो क्या करें।