एक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है; सिमटे तो दिल-ए-आशिक़ फैले तो ज़माना है! |
लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से; तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से! |
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा; लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं! |
तू सामने है तो फिर क्यों यक़ीं नहीं आता; ये बार बार जो आँखों को मल के देखते हैं! |
मुझे अब तुम से डर लगने लगा है; तुम्हें मुझ से मोहब्बत हो गई क्या! |
मोहब्बत रंग दे जाती है जब दिल दिल से मिलता है; मगर मुश्किल तो ये है दिल बड़ी मुश्किल से मिलता है! |
ज़रा देखे कोई दैर-ओ-हरम को; मेरा वो यार हरजाई कहाँ है! |
तेरे इश्क़ की इंतेहा चाहता हूँ; मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ! |
तुम को आता है प्यार पर ग़ुस्सा; मुझ को ग़ुस्से पे प्यार आता है! |
करूँगा क्या जो मोहब्बत में हो गया नाकाम; मुझे तो और कोई काम भी नहीं आता! |