जवाँ होने लगे जब वो तो हम से कर लिया पर्दा, हया यकलखत आई, और शबाब आहिस्ता-आहिस्ता! |
गज़ब किया जो तेरे वादे पे एतबार किया; तमाम रात हमने क़यामत का इंतज़ार किया; न पूछ दिल की हक़ीक़त मगर यह कहतें है; वो बेक़रार रहे जिसने बेक़रार किया! |
कहा से सीखें हुनर उसे मानाने का; कोई जवाज़ न था उस के रूठ जाने का; हर बात में सजा भी मुझे ही मिलनी थी; के जुर्म मैंने किया था उनसे दिल लगाने का! |
बहुत मुश्किल से सुलाया था खुद को `फ़राज़` मैंने आज; अपनी आँखों को तेरे ख्वाब का लालच दे कर! |
देख कैसी क़यामत सी बरपा हुई है आशियानों पर इक़बाल; जो लहू से तामीर हुए थे, पानी से बह गए! |
ऐसी बेरुखी भी देखी है, हम ने आज कल के लोगों में; आप से तुम तक, तुम से जान तक, जान से अनजान तक हो जाते हैं! |
हसरत भरी निगाहों को आराम तक नहीं, वो यूँ बदल गये है के अब सलाम तक नहीं! |
वो आये बज़्म में इतना तो मीर ने देखा; फिर उसके बाद चिरागो में रौशनी ही नहीं रही! |
तुम मेरे हो ऐसी हम जिद नही करेंगे; मगर हम तुम्हारे ही रहेंगे ये तो हम हक से कहेंगे! |
न जाने कौन सा आसब दिल में बसता है; के जो भी ठहरा वो आखिर मकान छोड़ गया! |