ना जाने यह नज़रें क्यों उदास रहती हैं; ना जाने इन्हे किसकी तलाश रहती है; जानती हैं यह कि वो किस्मत में नहीं; लेकिन फिर भी ना जाने क्यों उन्हें पाने की आस रखती हैं। |
दिल पे आए हुए इल्ज़ाम से पहचानते हैं; लोग अब मुझ को तेरे नाम से पहचानते हैं। |
बहुत ज़ालिम हो तुम भी, मोहब्बत ऐसे करते हो; जैसे घर के पिंजरे में परिंदा पाल रखा हो। |
तुझे दुश्मनों की खबर न थी मुझे दोस्तों का पता नहीं; तेरी दास्ताँ कोई और थी मेरा वाकिया कोई और है। |
और भी बनती लकीरें दर्द की शायद कई; शुक्र है तेरा खुदा जो हाथ छोटा सा दिया; तूने जो बख्शी हमें बस चार दिन की ज़िंदगी; या ख़ुदा अच्छा किया जो साथ छोटा सा दिया। |
यहाँ गमगीन मत होना, कोई जो भूल जाए तो; यहाँ रब को भी सब, वक़्त-ए-ज़रूरत याद करते हैं। |
तू छोड़ दे कोशिशें इंसानो को पहचानने की; यहाँ ज़रूरत के हिसाब से सब बदलते नक़ाब हैं; अपने गुनाहों पर सौ पर्दे डाल कर; हर शख्स कहता है ज़माना बड़ा खराब है। |
जरा सी वक़्त ने करवट क्या बदली; मेरे अपनों के नक़ाब गिर गए। |
हाल-ए-दिल ना-गुफ़्तनी है हम जो कहते भी तो क्या; फिर भी ग़म ये है कि उस ने हम से पूछा ही नहीं। |
जरा सा भी नही पिघलता दिल तेरा; इतना क़ीमती पत्थर कहाँ से ख़रीदा है। |