काश तू सुन पाता खामोश सिसकियां मेरी, आवाज़ करके रोना तो मुझे आज भी नहीं आता। |
तेरी ज़ुबान ने कुछ कहा तो नहीं था, फिर ना जाने क्यों मेरी आँख नम हो गयी। |
काश आँसुओ के साथ यादें भी बह जाती, तो एक दिन तसल्ली से बैठ कर रो लेते। |
वो तो बारिश कि बूँदें देखकर खुश होते हैं, उन्हें क्या मालूम कि हर गिरने वाला कतरा पानी नही होता। |
तेरी जरूरत, तेरा इंतजार और ये तन्हा आलम; थक कर मुस्कुरा देते हैं, हम जब रो नहीं पाते। |
आ देख मेरी आँखों के ये भीगे हुए मौसम, ये किसने कह दिया कि तुम्हें भूल गये हैं हम। |
बहुत अजब होती हैं यादें यह मोहब्बत की, रोये थे जिन पलों में याद कर उन्हें हँसी आती है; और हँसे थे जिन पलों में अब याद कर उन्हें रोना आता है। |
रात की गहराई आँखों में उतर आई,
कुछ ख्वाब थे और कुछ मेरी तन्हाई, ये जो पलकों से बह रहे हैं हल्के हल्के, कुछ तो मजबूरी थी कुछ तेरी बेवफाई। |
उसकी आँखों में कोई दुःख बसा है शायद; या मुझे खुद ही वहम सा हुआ है शायद; मैंने पूछा कि भूल गए हो तुम भी क्या; पोंछ कर आँसू आँख से उसने भी कहा शायद। |
क्या दुख है समुंदर को बता भी नहीं सकता; आँसू की तरह आँख तक आ भी नहीं सकता। |