ग़ज़ल Hindi Shayari

  • इसी में ख़ुश हूँ...

    इसी में ख़ुश हूँ मेरा दुख कोई तो सहता है;
    चली चलूँ कि जहाँ तक ये साथ रहता है;

    ज़मीन-ए-दिल यूँ ही शादाब तो नहीं ऐ दोस्त;
    क़रीब में कोई दरिया ज़रूर बहता है;

    न जाने कौन सा फ़िक़्रा कहाँ रक़्म हो जाये;
    दिलों का हाल भी अब कौन किस से कहता है;

    मेरे बदन को नमी खा गई अश्कों की;
    भरी बहार में जैसे मकान ढहता है।
    ~ Parveen Shakir
  • तुम हक़ीक़त नहीं हो हसरत हो;
    जो मिले ख़्वाब में वो दौलत हो;

    तुम हो ख़ुशबू के ख़्वाब की ख़ुशबू;
    औए इतने ही बेमुरव्वत हो;

    तुम हो पहलू में पर क़रार नहीं;
    यानी ऐसा है जैसे फुरक़त हो;

    है मेरी आरज़ू के मेरे सिवा;
    तुम्हें सब शायरों से वहशत हो;

    किस तरह छोड़ दूँ तुम्हें जानाँ;
    तुम मेरी ज़िन्दगी की आदत हो;

    किस लिए देखते हो आईना;
    तुम तो ख़ुद से भी ख़ूबसूरत हो;

    दास्ताँ ख़त्म होने वाली है;
    तुम मेरी आख़िरी मोहब्बत हो।
    ~ Jon Elia
  • तेरी महफ़िल में यह कसरत कभी थी;
    हमारे रंग की सोहबत कभी थी;

    इस आज़ादी में वहशत कभी थी;
    मुझे अपने से भी नफ़रत कभी थी;

    हमारा दिल, हमारा दिल कभी था;
    तेरी सूरत, तेरी सूरत कभी थी;

    हुआ इन्सान की आँखों से साबित;
    अयाँ कब नूर में जुल्मत कभी थी;

    दिल-ए-वीराँ में बाक़ी हैं ये आसार;
    यहाँ ग़म था, यहाँ हसरत कभी थी;

    तुम इतराए कि बस मरने लगा 'दाग़';
    बनावट थी जो वह हालत कभी थी।
    ~ Daagh Dehlvi
  • उसकी कत्थई आँखों में...

    उसकी कत्थई आँखों में हैं जंतर-मंतर सब;
    चाक़ू-वाक़ू, छुरियाँ-वुरियाँ, ख़ंजर-वंजर सब;

    जिस दिन से तुम रूठीं मुझ से रूठे-रूठे हैं;
    चादर-वादर, तकिया-वकिया, बिस्तर-विस्तर सब;

    मुझसे बिछड़ कर वह भी कहाँ अब पहले जैसी है;
    फीके पड़ गए कपड़े-वपड़े, ज़ेवर-वेवर सब;

    आखिर मै किस दिन डूबूँगा फ़िक्रें करते है;
    कश्ती-वश्ती, दरिया-वरिया लंगर-वंगर सब।
    ~ Rahat Indori
  • कहाँ तक आँख रोएगी...

    कहाँ तक आँख रोएगी कहाँ तक किसका ग़म होगा;
    मेरे जैसा यहाँ कोई न कोई रोज़ कम होगा;

    तुझे पाने की कोशिश में कुछ इतना रो चुका हूँ मैं;
    कि तू मिल भी अगर जाये तो अब मिलने का ग़म होगा;

    समन्दर की ग़लतफ़हमी से कोई पूछ तो लेता;
    ज़मीं का हौसला क्या ऐसे तूफ़ानों से कम होगा;

    मोहब्बत नापने का कोई पैमाना नहीं होता;
    कहीं तू बढ़ भी सकता है, कहीं तू मुझ से कम होगा।
    ~ Wasim Barelvi
  • बिछड़ा है जो एक बार तो...

    बिछड़ा है जो एक बार तो मिलते नहीं देखा;
    इस ज़ख़्म को हमने कभी सिलते नहीं देखा;

    इस बार जिसे चाट गई धूप की ख़्वाहिश;
    फिर शाख़ पे उस फूल को खिलते नहीं देखा;

    यक-लख़्त गिरा है तो जड़ें तक निकल आईं;
    जिस पेड़ को आँधी में भी हिलते नहीं देखा;

    काँटों में घिरे फूल को चूम आयेगी तितली;
    तितली के परों को कभी छिलते नहीं देखा;

    किस तरह मेरी रूह हरी कर गया आख़िर;
    वो ज़हर जिसे जिस्म में खिलते नहीं देखा।
    ~ Parveen Shakir
  • मय रहे, मीना रहे, ग़र्दिश में...

    मय रहे, मीना रहे, ग़र्दिश में पैमाना रहे;
    मेरे साक़ी तू रहे, आबाद मयखाना रहे;

    हश्र भी तो हो चुका, रुख़ से नहीं हटती नक़ाब;
    हद भी आख़िर कुछ है, कब तक कोई दीवाना रहे;

    रात को जा बैठते हैं, रोज़ हम मजनूं के पास;
    पहले अनबन रह चुकी है, अब तो याराना रहे;

    ज़िन्दगी का लुत्फ़ हो, उड़ती रहे हरदम रियाज़;
    हम हों, शीशे की परी हो,घर परीखाना रहे।
    ~ Riyaz Khairabadi
  • कब ठहरेगा दर्द-ए-दिल, कब रात बसर होगी;
    सुनते थे वो आयेंगे, सुनते थे सहर होगी;

    कब जान लहू होगी, कब अश्क गुहार होगा;
    किस दिन तेरी शनवाई, ऐ दीदा-ए-तर होगी;

    कब महकेगी फसले-गुल, कब बहकेगा मयखाना;
    कब सुबह-ए-सुखन होगी, कब शाम-ए-नज़र होगी;

    वाइज़ है न जाहिद है, नासेह है न क़ातिल है;
    अब शहर में यारों की, किस तरह बसर होगी;

    कब तक अभी रह देखें, ऐ कांटे-जनाना;
    कब अश्र मुअय्यन है, तुझको तो ख़बर होगी।
    ~ Faiz Ahmad Faiz
  • झूठा निकला क़रार तेरा;
    अब किसको है ऐतबार तेरा;

    दिल में सौ लाख चुटकियाँ लीं;
    देखा बस हम ने प्यार तेरा;

    दम नाक में आ रहा था अपने;
    था रात ये इंतिज़ार तेरा;

    कर ज़बर जहाँ तलक़ तू चाहे;
    मेरा क्या, इख्तियार तेरा;

    लिपटूँ हूँ गले से आप अपने;
    समझूँ कि है किनार तेरा;

    "इंशा" से मत रूठ, खफा हो;
    है बंदा जानिसार तेरा।
    ~ Insha Allah Khan Insha
  • दिल पे एक तरफ़ा क़यामत करना...

    दिल पे एक तरफ़ा क़यामत करना;
    मुस्कुराते हुए रुखसत करना;

    अच्छी आँखें जो मिली हैं उसको;
    कुछ तो लाजिम हुआ वहशत करना;

    जुर्म किसका था, सज़ा किसको मिली;
    अब किसी से ना मोहब्बत करना;

    घर का दरवाज़ा खुला रखा है;
    वक़्त मिल जाये तो ज़ह्मत करना।
    ~ Parveen Shakir