इसी में ख़ुश हूँ... इसी में ख़ुश हूँ मेरा दुख कोई तो सहता है; चली चलूँ कि जहाँ तक ये साथ रहता है; ज़मीन-ए-दिल यूँ ही शादाब तो नहीं ऐ दोस्त; क़रीब में कोई दरिया ज़रूर बहता है; न जाने कौन सा फ़िक़्रा कहाँ रक़्म हो जाये; दिलों का हाल भी अब कौन किस से कहता है; मेरे बदन को नमी खा गई अश्कों की; भरी बहार में जैसे मकान ढहता है। |
तुम हक़ीक़त नहीं हो हसरत हो; जो मिले ख़्वाब में वो दौलत हो; तुम हो ख़ुशबू के ख़्वाब की ख़ुशबू; औए इतने ही बेमुरव्वत हो; तुम हो पहलू में पर क़रार नहीं; यानी ऐसा है जैसे फुरक़त हो; है मेरी आरज़ू के मेरे सिवा; तुम्हें सब शायरों से वहशत हो; किस तरह छोड़ दूँ तुम्हें जानाँ; तुम मेरी ज़िन्दगी की आदत हो; किस लिए देखते हो आईना; तुम तो ख़ुद से भी ख़ूबसूरत हो; दास्ताँ ख़त्म होने वाली है; तुम मेरी आख़िरी मोहब्बत हो। |
तेरी महफ़िल में यह कसरत कभी थी; हमारे रंग की सोहबत कभी थी; इस आज़ादी में वहशत कभी थी; मुझे अपने से भी नफ़रत कभी थी; हमारा दिल, हमारा दिल कभी था; तेरी सूरत, तेरी सूरत कभी थी; हुआ इन्सान की आँखों से साबित; अयाँ कब नूर में जुल्मत कभी थी; दिल-ए-वीराँ में बाक़ी हैं ये आसार; यहाँ ग़म था, यहाँ हसरत कभी थी; तुम इतराए कि बस मरने लगा 'दाग़'; बनावट थी जो वह हालत कभी थी। |
उसकी कत्थई आँखों में... उसकी कत्थई आँखों में हैं जंतर-मंतर सब; चाक़ू-वाक़ू, छुरियाँ-वुरियाँ, ख़ंजर-वंजर सब; जिस दिन से तुम रूठीं मुझ से रूठे-रूठे हैं; चादर-वादर, तकिया-वकिया, बिस्तर-विस्तर सब; मुझसे बिछड़ कर वह भी कहाँ अब पहले जैसी है; फीके पड़ गए कपड़े-वपड़े, ज़ेवर-वेवर सब; आखिर मै किस दिन डूबूँगा फ़िक्रें करते है; कश्ती-वश्ती, दरिया-वरिया लंगर-वंगर सब। |
कहाँ तक आँख रोएगी... कहाँ तक आँख रोएगी कहाँ तक किसका ग़म होगा; मेरे जैसा यहाँ कोई न कोई रोज़ कम होगा; तुझे पाने की कोशिश में कुछ इतना रो चुका हूँ मैं; कि तू मिल भी अगर जाये तो अब मिलने का ग़म होगा; समन्दर की ग़लतफ़हमी से कोई पूछ तो लेता; ज़मीं का हौसला क्या ऐसे तूफ़ानों से कम होगा; मोहब्बत नापने का कोई पैमाना नहीं होता; कहीं तू बढ़ भी सकता है, कहीं तू मुझ से कम होगा। |
बिछड़ा है जो एक बार तो... बिछड़ा है जो एक बार तो मिलते नहीं देखा; इस ज़ख़्म को हमने कभी सिलते नहीं देखा; इस बार जिसे चाट गई धूप की ख़्वाहिश; फिर शाख़ पे उस फूल को खिलते नहीं देखा; यक-लख़्त गिरा है तो जड़ें तक निकल आईं; जिस पेड़ को आँधी में भी हिलते नहीं देखा; काँटों में घिरे फूल को चूम आयेगी तितली; तितली के परों को कभी छिलते नहीं देखा; किस तरह मेरी रूह हरी कर गया आख़िर; वो ज़हर जिसे जिस्म में खिलते नहीं देखा। |
मय रहे, मीना रहे, ग़र्दिश में... मय रहे, मीना रहे, ग़र्दिश में पैमाना रहे; मेरे साक़ी तू रहे, आबाद मयखाना रहे; हश्र भी तो हो चुका, रुख़ से नहीं हटती नक़ाब; हद भी आख़िर कुछ है, कब तक कोई दीवाना रहे; रात को जा बैठते हैं, रोज़ हम मजनूं के पास; पहले अनबन रह चुकी है, अब तो याराना रहे; ज़िन्दगी का लुत्फ़ हो, उड़ती रहे हरदम रियाज़; हम हों, शीशे की परी हो,घर परीखाना रहे। |
कब ठहरेगा दर्द-ए-दिल, कब रात बसर होगी; सुनते थे वो आयेंगे, सुनते थे सहर होगी; कब जान लहू होगी, कब अश्क गुहार होगा; किस दिन तेरी शनवाई, ऐ दीदा-ए-तर होगी; कब महकेगी फसले-गुल, कब बहकेगा मयखाना; कब सुबह-ए-सुखन होगी, कब शाम-ए-नज़र होगी; वाइज़ है न जाहिद है, नासेह है न क़ातिल है; अब शहर में यारों की, किस तरह बसर होगी; कब तक अभी रह देखें, ऐ कांटे-जनाना; कब अश्र मुअय्यन है, तुझको तो ख़बर होगी। |
झूठा निकला क़रार तेरा; अब किसको है ऐतबार तेरा; दिल में सौ लाख चुटकियाँ लीं; देखा बस हम ने प्यार तेरा; दम नाक में आ रहा था अपने; था रात ये इंतिज़ार तेरा; कर ज़बर जहाँ तलक़ तू चाहे; मेरा क्या, इख्तियार तेरा; लिपटूँ हूँ गले से आप अपने; समझूँ कि है किनार तेरा; "इंशा" से मत रूठ, खफा हो; है बंदा जानिसार तेरा। |
दिल पे एक तरफ़ा क़यामत करना... दिल पे एक तरफ़ा क़यामत करना; मुस्कुराते हुए रुखसत करना; अच्छी आँखें जो मिली हैं उसको; कुछ तो लाजिम हुआ वहशत करना; जुर्म किसका था, सज़ा किसको मिली; अब किसी से ना मोहब्बत करना; घर का दरवाज़ा खुला रखा है; वक़्त मिल जाये तो ज़ह्मत करना। |