ग़ज़ल Hindi Shayari

  • तेरी उम्मीद तेरा इंतज़ार...

    तेरी उम्मीद तेरा इंतज़ार जब से है;
    न शब को दिन से शिकायत न दिन को शब से है;

    किसी का दर्द हो करते हैं तेरे नाम रक़म;
    गिला है जो भी किसी से तेरे सबब से है;

    हुआ है जब से दिल-ए-नासुबूर बेक़ाबू;
    कलाम तुझसे नज़र को बड़े अदब से है;

    अगर शरर है तो भड़के, जो फूल है तो खिले;
    तरह तरह की तलब तेरे रंगे-लब से है;

    कहाँ गये शबे-फ़ुरक़त के जागनेवाले;
    सितारा-ए-सहरी हमकलाम कब से है।
    ~ Faiz Ahmad Faiz
  • हर तरफ हर जगह...

    हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी;
    फिर भी तन्हाईयों का शिकार आदमी;

    सुबह से शाम तक बोझ ढोता हुआ;
    अपनी ही लाश का खुद मज़ार आदमी;

    रोज़ जीता हुआ रोज़ मरता हुआ;
    हर नए दिन नया इतज़ार आदमी;

    हर तरफ भागते दौड़ते का शिकार आदमी;
    हर तरफ आदमी का शिकार आदमी;

    ज़िंदगी का मुक़द्दर सफ़र दर सफ़र;
    आखिरी सांस तक बेक़रार आदमी।
    ~ Nida Fazli
  • ख्याल में वो...

    ख्याल में वो, बेसुरती में वो;
    आँखों में वो, अक्स में वो;

    ख़ुशी में वो, दर्द में वो;
    आब में वो, शराब में वो;

    लाभ में वो, बेहिसाब में वो;
    मेरे अब हो लो, या जान मेरी लो।
    ~ JD Ghai
  • राज़-ए-उल्फत छुपा...

    राज़-ए-उल्फत छुपा के देख लिया;
    दिल बहुत जला के देख लिया;

    और क्या देखने को बाकी है;
    आपसे दिल लगा के देख लिया;

    वो मेरे हो के भी मेरे ना हुए;
    उनको अपना बना के देख लिया;

    आज उनकी नज़र में कुछ हमने;
    सबकी नज़र बचा के देख लिया;

    आस उस दर से टूटती ही नहीं;
    जा के देखा, न जा के देख लिया;

    'फैज़', तक्मील-ए-ग़म भी हो ना सकी;
    इश्क़ को आज़मा के देख लिया।
    ~ Faiz Ahmad Faiz
  • या मुझे अफ़्सर-ए-शाहा...

    या मुझे अफ़्सर-ए-शाहा न बनाया होता;
    या मेरा ताज गदाया न बनाया होता;

    ख़ाकसारी के लिये गरचे बनाया था मुझे;
    काश ख़ाक-ए-दर-ए-जानाँ न बनाया होता;

    नशा-ए-इश्क़ का गर ज़र्फ़ दिया था मुझको;
    उम्र का तंग न पैमाना बनाया होता;

    अपना दीवाना बनाया मुझे होता तूने;
    क्यों ख़िरदमन्द बनाया न बनाया होता;

    शोला-ए-हुस्न चमन में न दिखाया उसने;
    वरना बुलबुल को भी परवाना बनाया होता।
    ~ Bahadur Shah Zafar
  • दिल मेरा जिस से बहलता...

    दिल मेरा जिस से बहलता कोई ऐसा न मिला;
    बुत के बने तो मिले अल्लाह का बंदा ना मिला;

    बज़्म-ए-याराँ से फिरी बाद-ए-बहारी मायूस;
    एक सर भी उसे आमादा-ए-सौदा न मिला;

    गुल के ख़्वाहाँ तो नज़र आये बहुत इत्रफ़रोश;
    तालिब-ए-ज़मज़म-ए-बुलबुल-ए-शैदा न मिला;

    वाह क्या राह दिखाई हमें मुर्शद ने;
    कर दिया काबे को गुम और कलीसा न मिला;

    सय्यद उट्ठे जो गज़ट ले के तो लाखों लाये;
    शैख़ क़ुरान दिखाता फिरा पैसा न मिला।
    ~ Akbar Allahabadi
  • यार था गुलज़ार था...

    यार था गुलज़ार था बाद-ए-सबा थी मैं न था;
    लायक़-ए-पा-बोस-ए-जाँ क्या हिना थी, मैं न था;

    हाथ क्यों बाँधे मेरे छल्ला अगर चोरी हुआ;
    ये सरापा शोख़ी-ए-रंग-ए-हिना थी, मैं न था;

    मैंने पूछा क्या हुआ वो आप का हुस्न्-ओ-शबाब;
    हँस के बोला वो सनम शान-ए-ख़ुदा थी, मैं न था;

    मैं सिसकता रह गया और मर गये फ़रहाद-ओ-क़ैस;
    क्या उन्हीं दोनों के हिस्से में क़ज़ा थी, मैं न था।
    ~ Bahadur Shah Zafar
  • दोनों जहाँ देके वो...

    दोनों जहाँ देके वो समझे ये ख़ुश रहा;
    यां आ पड़ी ये शर्म की तकरार क्या करें;

    थक-थक के हर मक़ाम पे दो चार रह गये;
    तेरा पता न पायें तो नाचार क्या करें;

    क्या शमा के नहीं है हवाख़्वाह अहल-ए-बज़्म;
    हो ग़म ही जांगुदाज़ तो ग़मख़्वार क्या करें।

    Translation:
    नाचार=जिनका बस ना चले,
    हवाख़्वाह=शुभचिंतक,
    अहल-ए-बज़्म=महफिल वाले,
    जांगुदा=जान घुलाने वाला।
    ~ Mirza Ghalib
  • ​क्यूँ तबीअत कहीं​...
    ​​
    ​​क्यूँ तबीअत कहीं ठहरती नहीं​;​
    ​​दोस्ती तो उदास करती नहीं​;​
    ​​
    ​​हम हमेशा के सैर-चश्म सही​;​
    ​​तुझ को देखें तो आँख भरती नहीं​;​
    ​​
    ​​शब-ए-हिज्राँ भी रोज़-ए-बद की तरह​;​
    ​​कट तो जाती है पर गुज़रती नहीं​;
    ​​
    ​​ये मोहब्बत है, सुन, ज़माने, सुन​;​
    ​​ इतनी आसानियों से मरती नहीं​;

    ​जिस तरह तुम गुजारते हो फ़राज़​;
    ​जिंदगी उस तरह गुज़रती नहीं​।
    ~ Ahmad Faraz
  • ​रोने से और इश्क़ में...

    रोने से और् इश्क़ में बेबाक हो गए;
    धोए गए हम ऐसे कि बस पाक हो गए;

    सर्फ़-ए-बहा-ए-मै हुए आलात-ए-मैकशी;
    थे ये ही दो हिसाब सो यों पाक हो गए;

    रुसवा-ए-दहर गो हुए आवार्गी से तुम;
    बारे तबीयतों के तो चालाक हो गए;

    कहता है कौन नाला-ए-बुलबुल को बेअसर;
    पर्दे में गुल के लाख जिगर चाक हो गए;

    पूछे है क्या वजूद-ओ-अदम अहल-ए-शौक़ का;
    आप अपनी आग से ख़स-ओ-ख़ाशाक हो गए;

    करने गये थे उस से तग़ाफ़ुल का हम गिला;
    की एक् ही निगाह कि बस ख़ाक हो गए;

    इस रंग से उठाई कल उस ने 'असद' की नाश;
    दुश्मन भी जिस को देख के ग़मनाक हो गए।