तेरी उम्मीद तेरा इंतज़ार... तेरी उम्मीद तेरा इंतज़ार जब से है; न शब को दिन से शिकायत न दिन को शब से है; किसी का दर्द हो करते हैं तेरे नाम रक़म; गिला है जो भी किसी से तेरे सबब से है; हुआ है जब से दिल-ए-नासुबूर बेक़ाबू; कलाम तुझसे नज़र को बड़े अदब से है; अगर शरर है तो भड़के, जो फूल है तो खिले; तरह तरह की तलब तेरे रंगे-लब से है; कहाँ गये शबे-फ़ुरक़त के जागनेवाले; सितारा-ए-सहरी हमकलाम कब से है। |
हर तरफ हर जगह... हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी; फिर भी तन्हाईयों का शिकार आदमी; सुबह से शाम तक बोझ ढोता हुआ; अपनी ही लाश का खुद मज़ार आदमी; रोज़ जीता हुआ रोज़ मरता हुआ; हर नए दिन नया इतज़ार आदमी; हर तरफ भागते दौड़ते का शिकार आदमी; हर तरफ आदमी का शिकार आदमी; ज़िंदगी का मुक़द्दर सफ़र दर सफ़र; आखिरी सांस तक बेक़रार आदमी। |
ख्याल में वो... ख्याल में वो, बेसुरती में वो; आँखों में वो, अक्स में वो; ख़ुशी में वो, दर्द में वो; आब में वो, शराब में वो; लाभ में वो, बेहिसाब में वो; मेरे अब हो लो, या जान मेरी लो। |
राज़-ए-उल्फत छुपा... राज़-ए-उल्फत छुपा के देख लिया; दिल बहुत जला के देख लिया; और क्या देखने को बाकी है; आपसे दिल लगा के देख लिया; वो मेरे हो के भी मेरे ना हुए; उनको अपना बना के देख लिया; आज उनकी नज़र में कुछ हमने; सबकी नज़र बचा के देख लिया; आस उस दर से टूटती ही नहीं; जा के देखा, न जा के देख लिया; 'फैज़', तक्मील-ए-ग़म भी हो ना सकी; इश्क़ को आज़मा के देख लिया। |
या मुझे अफ़्सर-ए-शाहा... या मुझे अफ़्सर-ए-शाहा न बनाया होता; या मेरा ताज गदाया न बनाया होता; ख़ाकसारी के लिये गरचे बनाया था मुझे; काश ख़ाक-ए-दर-ए-जानाँ न बनाया होता; नशा-ए-इश्क़ का गर ज़र्फ़ दिया था मुझको; उम्र का तंग न पैमाना बनाया होता; अपना दीवाना बनाया मुझे होता तूने; क्यों ख़िरदमन्द बनाया न बनाया होता; शोला-ए-हुस्न चमन में न दिखाया उसने; वरना बुलबुल को भी परवाना बनाया होता। |
दिल मेरा जिस से बहलता... दिल मेरा जिस से बहलता कोई ऐसा न मिला; बुत के बने तो मिले अल्लाह का बंदा ना मिला; बज़्म-ए-याराँ से फिरी बाद-ए-बहारी मायूस; एक सर भी उसे आमादा-ए-सौदा न मिला; गुल के ख़्वाहाँ तो नज़र आये बहुत इत्रफ़रोश; तालिब-ए-ज़मज़म-ए-बुलबुल-ए-शैदा न मिला; वाह क्या राह दिखाई हमें मुर्शद ने; कर दिया काबे को गुम और कलीसा न मिला; सय्यद उट्ठे जो गज़ट ले के तो लाखों लाये; शैख़ क़ुरान दिखाता फिरा पैसा न मिला। |
यार था गुलज़ार था... यार था गुलज़ार था बाद-ए-सबा थी मैं न था; लायक़-ए-पा-बोस-ए-जाँ क्या हिना थी, मैं न था; हाथ क्यों बाँधे मेरे छल्ला अगर चोरी हुआ; ये सरापा शोख़ी-ए-रंग-ए-हिना थी, मैं न था; मैंने पूछा क्या हुआ वो आप का हुस्न्-ओ-शबाब; हँस के बोला वो सनम शान-ए-ख़ुदा थी, मैं न था; मैं सिसकता रह गया और मर गये फ़रहाद-ओ-क़ैस; क्या उन्हीं दोनों के हिस्से में क़ज़ा थी, मैं न था। |
दोनों जहाँ देके वो... दोनों जहाँ देके वो समझे ये ख़ुश रहा; यां आ पड़ी ये शर्म की तकरार क्या करें; थक-थक के हर मक़ाम पे दो चार रह गये; तेरा पता न पायें तो नाचार क्या करें; क्या शमा के नहीं है हवाख़्वाह अहल-ए-बज़्म; हो ग़म ही जांगुदाज़ तो ग़मख़्वार क्या करें। Translation: नाचार=जिनका बस ना चले, हवाख़्वाह=शुभचिंतक, अहल-ए-बज़्म=महफिल वाले, जांगुदा=जान घुलाने वाला। |
क्यूँ तबीअत कहीं... क्यूँ तबीअत कहीं ठहरती नहीं; दोस्ती तो उदास करती नहीं; हम हमेशा के सैर-चश्म सही; तुझ को देखें तो आँख भरती नहीं; शब-ए-हिज्राँ भी रोज़-ए-बद की तरह; कट तो जाती है पर गुज़रती नहीं; ये मोहब्बत है, सुन, ज़माने, सुन; इतनी आसानियों से मरती नहीं; जिस तरह तुम गुजारते हो फ़राज़; जिंदगी उस तरह गुज़रती नहीं। |
रोने से और इश्क़ में... रोने से और् इश्क़ में बेबाक हो गए; धोए गए हम ऐसे कि बस पाक हो गए; सर्फ़-ए-बहा-ए-मै हुए आलात-ए-मैकशी; थे ये ही दो हिसाब सो यों पाक हो गए; रुसवा-ए-दहर गो हुए आवार्गी से तुम; बारे तबीयतों के तो चालाक हो गए; कहता है कौन नाला-ए-बुलबुल को बेअसर; पर्दे में गुल के लाख जिगर चाक हो गए; पूछे है क्या वजूद-ओ-अदम अहल-ए-शौक़ का; आप अपनी आग से ख़स-ओ-ख़ाशाक हो गए; करने गये थे उस से तग़ाफ़ुल का हम गिला; की एक् ही निगाह कि बस ख़ाक हो गए; इस रंग से उठाई कल उस ने 'असद' की नाश; दुश्मन भी जिस को देख के ग़मनाक हो गए। |