इश़्क तो मर्ज़ ही बुढ़ापे का है; जवानी में, फ़ुर्सत ही कहाँ आवारगी से! |
चलते थे इस जहाँ में कभी सीना तान के हम भी; ये कम्बख्त इश्क़ क्या हुआ घुटनो पे आ गए। |
कूचा-ए-इश्क़ में निकल आया; जिस को ख़ाना-ख़राब होना था। कूचा-ए-इश्क़ = प्यार की गली ख़ाना-ख़राब = बर्बाद |
चंद कलियाँ नशात की चुन कर मुद्दतों महव-ए-यास रहता हूँ; तेरा मिलना ख़ुशी की बात सही तुझ से मिल कर उदास रहता हूँ। नशात = ख़ुशी महव-ए-यास = दुःख में खोना |
आँखों में आ जाते हैं आँसू; फिर भी लबों पे हँसी रखनी पडती है; ये मोहब्बत भी क्या चीज है यारों; जिस से करते हैं उसी से छुपानी पडती है। |
सिर्फ बिछड़ जाने से ही तो रिश्ता खतम नहीं होता; प्यार वो कुआँ है जिसका पानी कभी कम नहीं होता! |
जो कहा मैंने कि प्यार आता है मुझ को तुम पर; हँस के कहने लगा और आप को आता क्या है| |
अल्फाज़ अकसर अधूरे ही रह जाते हैं मोहब्बत में; हर शख़्स किसी ना किसी की चाहत दिल में दबाये रखता है! |
हाथ मिलाओ इस क़दर के दिल में हज़ारों मशालें जल जाएँ; किसी मुफ़लिस का घर तुम्हारे कर्मों रोशन हो जाए! |
एक नजर का झोंका आए, और छू जाए दिल को; मोहब्बत हो जाने में, वक्त ही कितना लगता है! |