ग़म-ए-हयात ने आवारा कर दिया वर्ना, थी आरजू तेरे दर पे सुबह-ओ-शाम करें! ग़म-ए-हयात = ज़िन्दगी का ग़म |
हारा हुआ सा वजूद लगता है मेरा; हर किसी ने लूटा है मोहब्बत का वास्ता देकर! |
यह मेरा इश्क़ था या फिर दीवानगी की इंतेहा; कि तेरे ही करीब से गुज़र गए तेरे ही ख्याल से! |
हम ने सीने से लगाया दिल न अपना बन सका; मुस्कुरा कर तुम ने देखा दिल तुम्हारा हो गया! |
जन्नत-ए-इश्क में हर बात अजीब होती है; किसी को आशिकी तो किसी को शायरी नसीब होती है! |
बुत-ख़ाना तोड़ डालिए मस्जिद को ढाइए; दिल को न तोड़िए ये ख़ुदा का मक़ाम है! |
इश़्क तो मर्ज़ ही बुढ़ापे का है; जवानी में, फ़ुर्सत ही कहाँ आवारगी से! |
चलते थे इस जहाँ में कभी सीना तान के हम भी; ये कम्बख्त इश्क़ क्या हुआ घुटनो पे आ गए। |
कूचा-ए-इश्क़ में निकल आया; जिस को ख़ाना-ख़राब होना था। कूचा-ए-इश्क़ = प्यार की गली ख़ाना-ख़राब = बर्बाद |
चंद कलियाँ नशात की चुन कर मुद्दतों महव-ए-यास रहता हूँ; तेरा मिलना ख़ुशी की बात सही तुझ से मिल कर उदास रहता हूँ। नशात = ख़ुशी महव-ए-यास = दुःख में खोना |