दर्द Hindi Shayari

  • मत बनाओ मुझे फुर्सत के लम्हों का खिलोना;<br/>
मैं भी इंसान हूँ, दर्द मुझे भी होता है!Upload to Facebook
    मत बनाओ मुझे फुर्सत के लम्हों का खिलोना;
    मैं भी इंसान हूँ, दर्द मुझे भी होता है!
  • अंदाज़ा लगा लेते हैं सब दर्द का मेरे;<br/>
मुस्काते हुए चहरे का नुक़्सान यही हैं;<br/>
बहक जाती हैं तक़दीरें इश्क का मुरीद होकर;<br/>
सिर्फ़ दर्द से रिश्ता कोई शौक़ से नहीं करता।Upload to Facebook
    अंदाज़ा लगा लेते हैं सब दर्द का मेरे;
    मुस्काते हुए चहरे का नुक़्सान यही हैं;
    बहक जाती हैं तक़दीरें इश्क का मुरीद होकर;
    सिर्फ़ दर्द से रिश्ता कोई शौक़ से नहीं करता।
  • कितनी बेचैनियाँ हैं जेहन में तुझे लेकर;<br/>
मगर तुझ सा सुकून भी कहीं और नहीं!Upload to Facebook
    कितनी बेचैनियाँ हैं जेहन में तुझे लेकर;
    मगर तुझ सा सुकून भी कहीं और नहीं!
  • कुछ सोच के इक राह-ए-पुर-ख़ार से गुज़रा था;<br/>
काँटे भी न रास आए दामन भी न काम आया! 
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    कुछ सोच के इक राह-ए-पुर-ख़ार से गुज़रा था;
    काँटे भी न रास आए दामन भी न काम आया!
    ~ Nushur Wahidi
  • है रश्क-ए-इरम वादी-ए-पुर-ख़ार-ए-मोहब्बत;<br/>
शायद उसे सींचा है किसी आबला-पा ने!Upload to Facebook
    है रश्क-ए-इरम वादी-ए-पुर-ख़ार-ए-मोहब्बत;
    शायद उसे सींचा है किसी आबला-पा ने!
    ~ Iqbal Suhail
  • जुदाइयों के तसव्वुर ही से रुलाऊं उसे;<br/>
मैं झूठ मूठ का किस्सा कोई सुनाऊं उसे!
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    जुदाइयों के तसव्वुर ही से रुलाऊं उसे;
    मैं झूठ मूठ का किस्सा कोई सुनाऊं उसे!
    ~ Hamid Iqbal Siddiqui
  • दयार-ए-दिल की राह में चराग़ सा जला गया;<br/>
मिला नहीं तो क्या हुआ, वो शक़्ल तो दिखा गया!Upload to Facebook
    दयार-ए-दिल की राह में चराग़ सा जला गया;
    मिला नहीं तो क्या हुआ, वो शक़्ल तो दिखा गया!
    ~ Nasir Kazmi
  • माना उन तक पहुंचती नहीं तपिश हमारी;<br/>
मतलब ये तो नहीं कि, सुलगते नहीं हैं हम!Upload to Facebook
    माना उन तक पहुंचती नहीं तपिश हमारी;
    मतलब ये तो नहीं कि, सुलगते नहीं हैं हम!
  • तिलिस्म-ए-गुंबद-ए-गर्दूं को तोड़ सकते हैं;<br/> 
ज़ुजाज की ये इमारत है संग-ए-ख़ारा नहीं!<br/> <br/>  
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    तिलिस्म-ए-गुंबद-ए-गर्दूं को तोड़ सकते हैं;
    ज़ुजाज की ये इमारत है संग-ए-ख़ारा नहीं!

    ~ Allama Iqbal
  • अब मैं समझा तेरे रुख़सार पे तिल का मतलब;<br/>
दौलत-ए-हुस्न पे दरबान बिठा रखा है!Upload to Facebook
    अब मैं समझा तेरे रुख़सार पे तिल का मतलब;
    दौलत-ए-हुस्न पे दरबान बिठा रखा है!
    ~ Qamar Moradabadi