मत बनाओ मुझे फुर्सत के लम्हों का खिलोना; मैं भी इंसान हूँ, दर्द मुझे भी होता है! |
अंदाज़ा लगा लेते हैं सब दर्द का मेरे; मुस्काते हुए चहरे का नुक़्सान यही हैं; बहक जाती हैं तक़दीरें इश्क का मुरीद होकर; सिर्फ़ दर्द से रिश्ता कोई शौक़ से नहीं करता। |
कितनी बेचैनियाँ हैं जेहन में तुझे लेकर; मगर तुझ सा सुकून भी कहीं और नहीं! |
कुछ सोच के इक राह-ए-पुर-ख़ार से गुज़रा था; काँटे भी न रास आए दामन भी न काम आया! |
है रश्क-ए-इरम वादी-ए-पुर-ख़ार-ए-मोहब्बत; शायद उसे सींचा है किसी आबला-पा ने! |
जुदाइयों के तसव्वुर ही से रुलाऊं उसे; मैं झूठ मूठ का किस्सा कोई सुनाऊं उसे! |
दयार-ए-दिल की राह में चराग़ सा जला गया; मिला नहीं तो क्या हुआ, वो शक़्ल तो दिखा गया! |
माना उन तक पहुंचती नहीं तपिश हमारी; मतलब ये तो नहीं कि, सुलगते नहीं हैं हम! |
तिलिस्म-ए-गुंबद-ए-गर्दूं को तोड़ सकते हैं; ज़ुजाज की ये इमारत है संग-ए-ख़ारा नहीं! |
अब मैं समझा तेरे रुख़सार पे तिल का मतलब; दौलत-ए-हुस्न पे दरबान बिठा रखा है! |