दोनों तेरी जुस्तुजू में फिरते हैं दर दर तबाह; दैर हिन्दू छोड़ कर काबा मुसलमाँ छोड़ कर! |
सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो, सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो; किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं, तुम अपने आप को ख़ुद ही बदल सको तो चलो! |
क़ैस जंगल में अकेला ही मुझे जाने दो; ख़ूब गुज़रेगी, जो मिल बैठेंगे दीवाने दो। |
'मीर' अमदन भी कोई मरता है; जान है तो जहान है प्यारे। |
आईनों को ज़ंग लगा; अब मैं कैसा लगता हूँ! |
साहिल के सुकून से किसे इनकार है लेकिन; तूफ़ान से लड़ने में मज़ा और ही कुछ है! *साहिल: किनारा |
आसमाँ एक सुलगता हुआ सहरा है जहाँ; ढूँढता फिरता है ख़ुद अपना ही साया सूरज! *सहरा: रेगिस्तान |
क्या हुस्न ने समझा है क्या इश्क़ ने जाना है; हम ख़ाक-नशीनों की ठोकर में ज़माना है! *ख़ाक-नशीनों: तपस्वी |
रात को रोज़ डूब जाता है; चाँद को तैरना सिखाना है! |
हयात ले के चलो क़ायनात ले के चलो; चलो तो सारे ज़माने को साथ ले के चलो! |