झूठ कहूँ तो लफ़्ज़ों का दम घुटता है, सच कहूँ तो लोग खफा हो जाते हैं! |
शाम-ए-ग़म कुछ उस निग़ाह-ए-नाज़ की बातें करो; बेखुदी बढ़ती चली है, राज़ की बातें करो! |
बहुत शौक था मुझे सबको जोडकर रखने का, होश तब आया जब खुद के वजूद के टुकडे हो गये। |
आगे आती थी हाल-ए-दिल पर हंसी; अब किसी बात पर नहीं आती! |
आह को चाहिये इक उम्र असर होने तक; कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक! |
कपड़े से तो, परदा होता है साहब; हिफाज़त तो, निगाहों से होती है| |
जवानी हो ग़र जावेदानी तो यारब; तेरी सादा दुनिया को जन्नत बना दें! |
हमरा नाम भी वो लेंगे लेकिन; हमारा ज़िक्र सबके बाद होगा! |
सरकता जाये है रुख से नक़ाब आहिस्ता-आहिस्ता; निकलता आ रहा है आफ़्ताब आहिस्ता-आहिस्ता! |
वो कभी मिल जाये मुझको अपनी साँसों के करीब; होंठ को जुंबिश न दूँ और ग़ुफ्त-ग़ू सारी करूँ! |