देखिये पाते हैं उश्शाक़, बुतों से क्या फ़ैज़; एक ब्राह्मण ने कहा है, कि यह साल अच्छा है! |
नजाकत ले के आँखों में, वो उनका देखना तौबा; या खुदा, हम उन्हें देखें कि उनका देखना देखें! |
फ़क़ीर मिज़ाज़ हूँ मैं, अपना अंदाज़ औरों से जुदा रखता हूँ; लोग मंदिर मस्जिदों में जाते हैं, मैं अपने दिल में ख़ुदा रखता हूँ। |
शहर में सबको कहाँ मिलती है रोने की जगह, अपनी इज़्ज़त भी यहाँ हँसने हंसाने से रही। |
वो एक बात बहुत तल्ख़ कही थी उसने, बात तो याद नहीं, याद है लहज़ा उसका। |
फरवरी आयी है नया नाम लेकर, कुछ खबर कुछ इल्जाम लेकर; मोहबत का महीना है, सम्भल कर रहना कोई छोड ना जाये झूठा पेगाम देकर। |
मोहब्बत अब समझदार हो गयी है, हैसियत देख कर आगे बढ़ती है। |
कुछ लोग ये सोचकर भी मेरा हाल नहीं पूछते, कि ये पागल दीवाना फिर कोई शायरी न कर दे। |
हर रिश्ते मे सिर्फ नूर बरसेगा, शर्त बस इतनी है कि रिश्ते में शरारतें करो, साजिशें नहीं। |
मैं वो मेले में भटकता हुआ एक बच्चा हूँ, जिसके माँ-बाप को रोते हुए मर जाना है; एक बेनाम से रिश्ते की तमन्ना लेकर, इस कबूतर को किसी छत पे उतर जाना है। |