दुनिया ने हम पे जब कोई इल्ज़ाम रख दिया; हमने मुक़ाबिल उसके तेरा नाम रख दिया; इक ख़ास हद पे आ गई जब तेरी बेरुख़ी; नाम उसका हमने गर्दिशे-अय्याम रख दिया। शब्दार्थ: गर्दिशे-अय्याम = समय का चक्कर |
दर्द ही सही मेरे इश्क़ का इनाम तो आया; खाली ही सही होठों तक जाम तो आया; मैं हूँ बेवफा सबको बताया उसने; यूँ ही सही चलो उसके लबों पर मेरा नाम तो आया। |
ज़िंदगी से चले हैं अब इल्ज़ाम लेकर; बहुत जी चुके हैं अब उनका नाम लेकर; अकेले बातें करेंगे अब वो इन सितारों से; अब चले जायेंगे उन्हें यह सारा आसमान देकर। |
जब प्यार नहीं है तो भुला क्यों नहीं देते; ख़त किसलिए रखे हैं जला क्यों नहीं देते; किस वास्ते लिखा है हथेली पे मेरा नाम; मैं हर्फ़ ग़लत हूँ तो मिटा क्यों नहीं देते। |
मुझे शिकवा नहीं कुछ बेवफ़ाई का तेरी हरगिज़; गिला तब हो अगर तूने किसी से भी निभाई हो। |
अब कर के फ़रामोश तो नाशाद करोगे; पर हम जो न होंगे तो बहुत याद करोगे। |
भुला के मुझको अगर तुम भी हो सलामत; तो भुला के तुझको संभलना मुझे भी आता है; नहीं है मेरी फितरत में ये आदत वरना; तेरी तरह बदलना मुझे भी आता है। |
ना रोया कर सारी-सारी रात किसी बेवफा की याद में; को खुश है अपनी दुनिया में तेरी दुनिया उजाड़ कर। |
मैंने कब चाहा कि... मैंने कब चाहा कि मैं उस की तमन्ना हो जाऊँ; ये भी क्या कम है अगर उस को गवारा हो जाऊँ; मुझ को ऊँचाई से गिरना भी है मंज़ूर, अगर; उस की पलकों से जो टूटे, वो सितारा हो जाऊँ; लेकर इक अज़्म उठूँ रोज़ नई भीड़ के साथ; फिर वही भीड़ छटे और मैं तनहा हो जाऊँ; जब तलक महवे-नज़र हूँ, मैं तमाशाई हूँ; टुक निगाहें जो हटा लूं तो तमाशा हो जाऊँ; मैं वो बेकार सा पल हूँ, न कोइ शब्द, न सुर; वह अगर मुझ को रचाले तो हमेशा हो जाऊँ; आगही मेरा मरज़ भी है, मुदावा भी है 'साज़'; जिस से मरता हूँ, उसी ज़हर से अच्छा हो जाऊँ। |
अच्छा यक़ीं नहीं है तो कश्ती डुबा के देख; एक तू ही नाख़ुदा नहीं ज़ालिम ख़ुदा भी है। |