तुम्हें बस यह बताना चाहता हूँ; मैं तुमसे क्या छुपाना चाहता हूँ! कभी मुझसे भी कोई झूठ बोलो; मैं हाँ में हाँ मिलाना चाहता हूँ! अदाकारी बड़ा दुःख दे रही है; मैं सचमुच मुस्कुराना चाहता हूँ! अमीरी इश्क़ की तुमको मुबारक; मैं बस खाना कमाना चाहता हूँ! मुझे तुमसे बिछड़ना ही पड़ेगा; मैं तुमको याद आना चाहता हूँ! |
ये माना के वो मेरा यार नहीं है, ऐसा भी नहीं के प्यार नहीं है; ऐसे कैसे उसे मैं दिल से निकालूं, वो मालिक है इसका किरायेदार नहीं है! |
उसे कहो बहुत जल्द मिलने आए हमें, अकेले रहने की आदत ही पड़ ना जाए हमें; अभी तो आँख में जलते हैं बेशुमार चिराग़, हवा-ए हिज्र जऱा खुल कर आज़माएँ हमें; हर इक की बात पे कहता नहीं है दिल लब्बैक, पसंद आती नहीं हर किसी की राय हमें; हमारे दिल तो मिले आदतें नहीं मिलती, उसे पसंद नही कॉफ़ी और चाय हमें! |
ना रख इश्क में इम्तेहान मैं अनपढ़ हूँ; तेरी याद के सिवा मुझे कुछ नही आता..! |
रुख मस्जिद का किया था उसे भुलाने की नीयत से, दुआ में हाथ क्या उठे फिर उसी को मांग बैठे..! |
ख़ुदा का ज़िकर नही है उम्दा इस नासूर के; ये इश्क़ और ख़ुदा की तोहीन है बाबस्ता! |
दुश्मनी लाख सही ख़त्म न कीजिये रिश्ता; दिल मिले या न मिले हाथ मिलाते रहिए! |
जस्ता जस्ता पढ़ लिया करना मज़ामीन-ए-वफ़ा, पर किताब-ए-इश्क़ का हर बाब मत देखा करो; इस तमाशे में उलट जाती हैं अक्सर कश्तियाँ, डूबने वालों को ज़ेर-ए-आब मत देखा करो; *जस्ता: उछला हुआ *बाब: द्वार *ज़ेर-ए-आब: पानी के नीचे *मज़ामीन-ए-वफ़ा: निरंतरता के विषय |
सर से पा तक वो गुलाबों का शजर लगता है, बा-वज़ू हो के भी छूते हुए डर लगता है; मैं तेरे साथ सितारों से गुज़र सकता हूँ, कितना आसान मोहब्बत का सफ़र लगता है! *बा-वज़ू: शुद्ध और स्वच्छ |
एक हक़ीक़त हूँ अगर इज़हार हो जाऊँगा मैं; जाने किस किस जुर्म का इक़रार हो जाऊँगा मैं! |