हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी, फिर भी तनहाइयों का शिकार आदमी; सुबह से शाम तक बोझ ढोता हुआ, अपनी ही लाश का खुद मज़ार आदमी; हर तरफ भागते दौड़ते रास्ते, हर तरफ आदमी का शिकार आदमी; रोज जीता हुआ रोज मरता हुआ, हर नए दिन नया इंतज़ार आदमी; ज़िंदगी का मुक़द्दर सफ़र-दर-सफ़र, आखिरी सांस तक बेक़रार आदमी! |
तू साहिल है मेरा और जिन्दगी कश्ती है, तेरी आँखों में देख के खुशी हँसती है; ना जा हो कर नाराज़ कहीं दूर मुझसे, तेरे दिल में ही साँसें मेरी बसती हैं; देता नहीं दीदार कभी क्यों मुझ को तू, प्यास-ए-दीदार में आँखें तरसती हैं; देखता हूँ बैठे दो पक्षियों को साथ, तेरी याद में तब आँखें बरसती हैं; बड़ा गुमान है क्यों तुझको खुद पे, क्या है पहचान तेरी क्या तेरी हस्ती है; आज जाना है दिल के टूटने पे हमने, मोहब्बत की नहीं दिलजलों की बस्ती है! |
जिसको दिल में बसाया हमने वो दूर हमसे रहने लगे, जिनको अपना माना हमने वो पराया हमको कहने लगे; जो बने कभी हमदर्द हमारे वो दर्द हमको देने लगे, जब लगी आग मेरे घर में तो पत्ते भी हवा देने लगे; जिनसे की वफ़ा हमने वो बेवफा हमको कहने लगे, जिनको दिया मरहम हमने वो ज़ख्म हमको देने लगे; बचकर निकलता था काँटों से मगर फूल भी ज़ख्म देने लगे, जब लगी आग मेरे घर में तो पत्ते भी हवा देने लगे; बनायी जिनकी तस्वीर हमने अब चेहरा वो बदलने लगे, जो रहते थे दिल में मेरे अब महलों में जाकर रहने लगे। |
जिंदगी में दर्द सब सहते रहे, जो मिला था प्यार हम खोते रहे; नफरतों के बीच नाजुक दिल मेरा, तोड़ के वादे सभी चलते रहे; बढ रही बेचैनियां मेरी यहाँ, रात को तुम ख्वाब में आते रहे; लौट आयी जिंदगी फिर से वहीं, पेट की उस भूख से रोते रहे; आँखों में छाया नशा है प्यार का, इश्क में तेरे वफा मिलते रहे; चाहतों के दरमियां इंतजार है, भूलकर भी आज हम मिलते रहे; रख लिया पत्थर दिलों में हमने भी, दर्द की दास्तान को सुनते रहे| |
ग़म मौत का नहीं है, ग़म ये कि आखिरी वक़्त भी तू मेरे घर नहीं है; निचोड़ अपनी आँखों को, कि दो आँसू टपके, और कुछ तो मेरी लाश को हुस्न मिले, डाल दे अपने आँचल का टुकड़ा, कि मेरी मय्यत पे कफ़न नहीं है! |
रात में कौन वहां जाये जहाँ आग लगी, सुबह अख़बार में पढ़ लेंगे कहाँ आग लगी; आग से आग बुझाने का अमल जारी था, हम भी पानी लिए बैठे थे जहाँ आग लगी; वो भी अब आग बुझाने को चले आएं हैं, जिनको ये भी नहीं मालूम कहाँ आग लगी; किसको फुरसत थी जो देता किसी आवाज़ पे ध्यान, चीखता फिरता था आवारा धुंआ आग लगी; सुबह तक सारे निशानात मिटा डालेंगे, कोई पूछेगा तो कह देंगे कहाँ आग लगी। |
कितने ऐश उड़ाते होंगे कितने इतराते होंगे, जाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे; उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा, यूँ ही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे; बंद रहे जिन का दरवाज़ा ऐसे घरों की मत पूछो, दीवारें गिर जाती होंगी आँगन रह जाते होंगे; मेरी साँस उखड़ते ही सब बैन करेंगे रोएंगे, यानी मेरे बाद भी यानी साँस लिये जाते होंगे; यारो कुछ तो बात बताओ उस की क़यामत बाहों की, वो जो सिमटते होंगे इन में वो तो मर जाते होंगे। |
मैं बुरा ही सही भला न सही, पर तेरी कौन सी जफ़ा न सही; दर्द-ए-दिल हम तो उन से कह गुज़रे, गर उन्हों ने नहीं सुना न सही; शब-ए-ग़म में बला से शुग़ल तो है, नाला-ए-दिल मेरा रसा न सही; दिल भी अपना नहीं रहा न रहे, ये भी ऐ चर्ख़-ए-फ़ित्ना-ज़ा न सही; देख तो लेंगे वो अगर आए, ताक़त-ए-अर्ज़-ए-मुद्दआ न सही; कुछ तो आशिक़ से छेड़-छाड़ रही; कज-अदाई सही अदा न सही; क्यूँ बुरा मानते हो शिकवा मेरा, चलो बे-जा सही ब-जा न सही; उक़दा-ए-दिल हमारा या क़िस्मत, न खुला तुझ से ऐ सबा न सही; वाइज़ो बंद-ए-ख़ुदा तो है 'ऐश', हम ने माना वो पारसा न सही। |
आख़िर-ए-शब वो तेरी अँगड़ाई, कहकशाँ भी फलक पे शरमाई; आप ने जब तवज्जोह फ़रमाई, गुलशन-ए-ज़ीस्त में बहार आई; दास्ताँ जब भी अपनी दोहराई, ग़म ने की है बड़ी पज़ीराई; सजदा-रेज़ी को कैसे तर्क करूँ, है यही वजह-ए-इज़्ज़त-अफ़ज़ाई; तुम ने अपना नियाज़-मंद कहा, आज मेरी मुराद बर आई; आप फ़रमाइए कहाँ जाऊँ, आप के दर से है शनासाई; उस की तक़दीर में है वस्ल की शब, जिस ने बर्दाश्त की है तन्हाई; रात पहलू में आप थे बे-शक, रात मुझ को भी ख़ूब नींद आई; मैं हूँ यूँ इस्म-ब-मुसम्मा 'अज़ीज़', वारिश-ए-पाक का हूँ शैदाई। |
ये किसने गला घोंट दिया जिन्दादिली का, चेहरे पे हँसी है कि जनाजा है हँसी का; हर हुस्न में उस हुस्न की हल्की सी झलक है, दीदार का हक मुझको है जल्वा हो किसी का; रक्साँ है कोई हूर कि लहराती है सहबा, उड़ना कोई देखे मिरे शीशे की परी का; जब रात गले मिलके बिछड़ती है सहर से, याद आता है मंजर तेरी रूखसत की घड़ी का; उन आँखों के पैमानों से छलकी जो जरा सी, मैखाने में होश उड़ गया शीशे की परी का; रूस्वा है 'नजीर' अपने ही बुतखाने की हद में, दीवाना अगर है तो बनारस की गली का। |