मंज़िलों से ही गुमराह कर देते हैं कुछ लोग, हर किसी से रास्ता पूछना अच्छा नहीं होता। |
ये वफ़ा की सख़्त राहें ये तुम्हारे पाँव नाज़ुक; ना लो इंतिक़ाम मुझ से मेरे साथ साथ चल के। |
जुस्तुजू जिस की थी उस को तो न पाया हम ने; इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हम ने। |
चाह कर भी पूछ नहीं सकते हाल उनका, डर है कहीं कह ना दे कि ये हक तुम्हें किसने दिया। |
आसमाँ इतनी बुलंदी पे जो इतराता है; भूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है। |
खुदा तू भी कारीगर निकला, खींच दी दो - तीन लकीरें हाथों में और ये भोला आदमी उसे तकदीर समझ बैठा। |
जिस को जाना ही नहीं उस को ख़ुदा कैसे कहें, और जिसे जान लिया हो वो ख़ुदा कैसे हो। |
अजीब इत्तेफाक था वो मतलब से मिलते थे, और हमें तो बस मिलने से मतलब था। |
आजाद कर देंगे तुम्हे अपनी चाहत की कैद से, मगर वो शख्स तो लाओ जो हमसे ज्यादा कदर करे तुम्हारी। |
कोई हालात नहीं समझता, कोई जज़्बात नहीं समझता; ये तो बस अपनी अपनी समझ है, कोई कोरा कागज़ भी पढ़ लेता है, तो कोई पूरी किताब नहीं समझता। |