छुपे हैं लाख हक़ के मरहले गुम-नाम होंटों पर; उसी की बात चल जाती है जिस का नाम चलता है। |
सब का तो मुदावा कर डाला अपना ही मुदावा कर न सके; सब के तो गिरेबाँ सी डाले अपना ही गिरेबाँ भूल गए। |
क्यों हिज्र के शिकवे करता है क्यों दर्द के रोने रोता है; अब इश्क़ किया तो सब्र भी कर इस में तो यही कुछ होता है। |
वही रंजिशें वही हसरतें, न ही दर्द-ए-दिल में कमी हुई; है अजीब सी मेरी ज़िन्दगी, न गुज़र सकी न खत्म हुई। |
आँखों के परदे भी नम हो गए हैं; बातों के सिलसिले भी कम हो गए हैं; पता नहीं गलती किसकी है; वक़्त बुरा है या बुरे हम हो गए हैं। |
इक़रार कर गया कभी इंकार कर गया; हर बात एक अज़ब से दो-चार कर गया; रास्ता बदल के भी देखा मगर वो शख्स; दिल में उतर कर सारी हदें पार कर गया। |
अपना ही समझते हैं तुम्हें दिल-ओ-जाना हम तुम्हें; दुश्मनों को तो कभी दिल में बसाया नहीं जाता। |
कभी किसी से प्यार मत करना; हो जाए तो इनकार मत करना; निभा सको तो चलना उसकी राह पर; वरना किसी की ज़िंदगी बरबाद मत करना। |
सुना है जब वो मायूस होते हैं तो हमें बहुत याद करते हैं; तू ही बता ऐ खुदा अब दुआ उनकी खुशी की करुँ या मायूसी की। |
तुम ने जो दिल के अँधेरे में जलाया था कभी; वो दिया आज भी सीने में जला रखा है; देख आ कर दहकते हुए ज़ख्मों की बहार; मैंने अब तक तेरे गुलशन को सजा रखा है। |