ग़ज़ल Hindi Shayari

  • फ़राज़ अब कोई सौदा​...

    ​ फ़राज़ अब कोई सौदा कोई जुनूँ भी नहीं​;
    ​ मगर क़रार से दिन कट रहे हों यूँ भी नहीं​;​

    ​ लब-ओ-दहन भी मिला गुफ़्तगू का फ़न भी मिला​;
    ​ मगर जो दिल पे गुज़रती है कह सकूँ भी नहीं​;

    मेरी ज़ुबाँ की लुक्नत से बदगुमाँ न हो ​;​
    जो तू कहे तो तुझे उम्र भर मिलूँ भी नहीं​;

    ​​ "फ़राज़" जैसे कोई दिया तुर्बत-ए-हवा चाहे है​; ​​
    ​ तू पास आये तो मुमकिन है मैं रहूँ भी नहीं​।
    ~ Ahmad Faraz
  • बात करनी मुझे...

    बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी;
    जैसी अब है तेरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी;

    ले गया छीन के कौन आज तेरा सब्र-ओ-क़रार;
    बेक़रारी तुझे ऐ दिल कभी ऐसी तो न थी;

    उन की आँखों ने ख़ुदा जाने किया क्या जादू;
    के तबीयत मेरी माइल कभी ऐसी तो न थी;

    चश्म-ए-क़ातिल मेरी दुश्मन थी हमेशा लेकिन;
    जैसी अब हो गई क़ातिल कभी ऐसी तो न थी;

    क्या सबब तू जो बिगड़ता है 'ज़फ़र' से हर बार;
    ख़ू तेरी हूर-ए-शमाइल कभी ऐसी तो न थी।
    ~ Bahadur Shah Zafar
  • ​​​दिल में अब यूँ...

    ​ दिल में अब यूँ तेरे भूले हुए ग़म आते है;​​
    जैसे बिछड़े हुए काबे में सनम आते है;​
    ​​
    ​ रक़्स-ए-मय तेज़ करो, साज़ की लय तेज़ करो​;​
    सू-ए-मैख़ाना सफ़ीरान-ए-हरम आते है;​

    ​ और कुछ देर न गुज़रे शब-ए-फ़ुर्क़त से कहो​;​​
    दिल भी कम दुखता है वो याद भी कम आते है;​

    ​ इक इक कर के हुये जाते हैं तारे रौशन​;​​
    मेरी मन्ज़िल की तरफ़ तेरे क़दम आते है​;​

    ​ कुछ हमीं को नहीं एहसान उठाने का दिमाग​;​​
    वो तो जब आते हैं माइल-ब-करम आते है​।
    ~ Faiz Ahmad Faiz
  • यूं न मिल मुझ से ​...​

    यूं न मिल मुझ से ख़फ़ा हो जैसे​;​​
    साथ चल मौज-ए-सबा हो जैसे​;​​

    लोग यूं देख के हंस देते हैं;​
    तू मुझे भूल गया हो जैसे​;​

    इश्क़ को शिर्क की हद तक न बढ़ा​;​
    यूं न छुप हम से ख़ुदा हो जैसे​;​​

    ​ मौत भी आई तो इस नाज़ के साथ​;​​
    मुझ पे अहसान किया हो जैसे।
    ~ Ahsaan Danish
  • अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ ​....​

    ​ ​अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा​;​
    जिस दिल पे नाज़ था मुझे वो दिल नहीं रहा​;​ ​​

    ​ मरने की, अय दिल, और ही तदबीर कर, कि मैं;​
    शायान-ए-दस्त-ओ-बाज़ु-ए-का़तिल नहीं रहा​;​

    ​ वा कर दिए हैं शौक़ ने, बन्द-ए-नकाब-ए-हुस्न​;​
    ग़ैर अज़ निगाह, अब कोई हाइल नहीं रहा​;​

    ​ बेदाद-ए-इश्क़ से नहीं डरता मगर असद ​;​
    ​ जिस दिल पे नाज़ था मुझे, वो दिल नहीं रहा।
    ~ Mirza Ghalib
  • मिलकर जुदा हुए...

    मिलकर जुदा हुए तो न सोया करेंगे हम;
    एक दूसरे की याद में रोया करेंगे हम;

    आँसू छलक छलक के सतायेंगे रात भर;
    मोती पलक पलक में पिरोया करेंगे हम;

    जब दूरियों की आग दिलों को जलायेगी;
    जिस्मों को चाँदनी में भिगोया करेंगे हम;

    गर दे गया दग़ा हमें तूफ़ान भी 'क़तील';
    साहिल पे कश्तियों को डूबोया करेंगे हम।
    ~ Qateel Shifai
  • तन्हा तन्हा हम...

    तन्हा तन्हा हम रो लेंगे महफ़िल महफ़िल गायेंगे;
    जब तक आँसू पास रहेंगे तब तक गीत सुनायेंगे;

    तुम जो सोचो वो तुम जानो हम तो अपनी कहते हैं;
    देर न करना घर जाने में वरना घर खो जायेंगे;

    बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो;
    चार किताबें पढ़ कर वो भी हम जैसे हो जायेंगे;

    किन राहों से दूर है मंज़िल कौन सा रस्ता आसाँ है;
    हम जब थक कर रुक जायेंगे औरों को समझायेंगे;

    अच्छी सूरत वाले सारे पत्थर-दिल हो मुम्किन है;
    हम तो उस दिन राए देंगे जिस दिन धोका खायेंगे।
    ~ Nida Fazli
  • कोई उस शहर में...

    कोई उस शहर में कब था उसका;
    उसे यह ​​​ज़ो'म कि रब था उसका;

    उसकी रग-रग में उतरती रही आग;
    उसके अंदर ही ग़ज़ब था उसका;

    वही सिलसिला-ए-तार-ए-नफ़स;
    वही जीने का सबब था उसका;

    सिद्क़-जदा था वो शहज़ादा कमाल;
    बस यही नाम-ओ-नसब था उसका।

    Translation:
    ज़ो'म= गर्व
    सिद्क़= सच
    ~ Ahmad Kamal Abdullah
  • ये चाँदनी भी जिन को...

    ये चाँदनी भी जिन को छूते हुए डरती है;
    दुनिया उन्हीं फूलों को पैरों से मसलती है;

    शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमशा है;
    जिस डाल पर बैठे हो वो टूट भी सकती है;

    लोबान में चिंगारी जैसे कोई रख दे;
    यूँ याद तेरी शब भर सीने में सुलगती है;

    आ जाता है ख़ुद खींच कर दिल सीने से पटरी पर;
    जब रात की सरहद से इक रेल गुज़रती है;

    आँसू कभी पलकों पर तो देर तक नहीं रुकते;
    उड़ जाते हैं वे पंछी जब शाख़ लचकती है;

    ख़ुश रंग परिंदों के लौट आने के दिन आये;
    बिछड़े हुए मिलते हैं जब बर्फ़ पिघलती है।
    ~ Bashir Badr
  • मुझ से पहली सी मोहब्बत...

    मुझ से पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब न माँग;
    मैंने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात;

    तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है;
    तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात;

    तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है;
    तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है;

    तू जो मिल जाये तो तक़दीर निगूँ हो जाये;
    यूँ न था मैं ने फ़क़त चाहा था यूँ हो जाये;

    और भी दुःख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा;
    राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा।
    ~ Faiz Ahmad Faiz