फ़राज़ अब कोई सौदा... फ़राज़ अब कोई सौदा कोई जुनूँ भी नहीं; मगर क़रार से दिन कट रहे हों यूँ भी नहीं; लब-ओ-दहन भी मिला गुफ़्तगू का फ़न भी मिला; मगर जो दिल पे गुज़रती है कह सकूँ भी नहीं; मेरी ज़ुबाँ की लुक्नत से बदगुमाँ न हो ; जो तू कहे तो तुझे उम्र भर मिलूँ भी नहीं; "फ़राज़" जैसे कोई दिया तुर्बत-ए-हवा चाहे है; तू पास आये तो मुमकिन है मैं रहूँ भी नहीं। |
बात करनी मुझे... बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी; जैसी अब है तेरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी; ले गया छीन के कौन आज तेरा सब्र-ओ-क़रार; बेक़रारी तुझे ऐ दिल कभी ऐसी तो न थी; उन की आँखों ने ख़ुदा जाने किया क्या जादू; के तबीयत मेरी माइल कभी ऐसी तो न थी; चश्म-ए-क़ातिल मेरी दुश्मन थी हमेशा लेकिन; जैसी अब हो गई क़ातिल कभी ऐसी तो न थी; क्या सबब तू जो बिगड़ता है 'ज़फ़र' से हर बार; ख़ू तेरी हूर-ए-शमाइल कभी ऐसी तो न थी। |
दिल में अब यूँ... दिल में अब यूँ तेरे भूले हुए ग़म आते है; जैसे बिछड़े हुए काबे में सनम आते है; रक़्स-ए-मय तेज़ करो, साज़ की लय तेज़ करो; सू-ए-मैख़ाना सफ़ीरान-ए-हरम आते है; और कुछ देर न गुज़रे शब-ए-फ़ुर्क़त से कहो; दिल भी कम दुखता है वो याद भी कम आते है; इक इक कर के हुये जाते हैं तारे रौशन; मेरी मन्ज़िल की तरफ़ तेरे क़दम आते है; कुछ हमीं को नहीं एहसान उठाने का दिमाग; वो तो जब आते हैं माइल-ब-करम आते है। |
यूं न मिल मुझ से ... यूं न मिल मुझ से ख़फ़ा हो जैसे; साथ चल मौज-ए-सबा हो जैसे; लोग यूं देख के हंस देते हैं; तू मुझे भूल गया हो जैसे; इश्क़ को शिर्क की हद तक न बढ़ा; यूं न छुप हम से ख़ुदा हो जैसे; मौत भी आई तो इस नाज़ के साथ; मुझ पे अहसान किया हो जैसे। |
अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ .... अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा; जिस दिल पे नाज़ था मुझे वो दिल नहीं रहा; मरने की, अय दिल, और ही तदबीर कर, कि मैं; शायान-ए-दस्त-ओ-बाज़ु-ए-का़तिल नहीं रहा; वा कर दिए हैं शौक़ ने, बन्द-ए-नकाब-ए-हुस्न; ग़ैर अज़ निगाह, अब कोई हाइल नहीं रहा; बेदाद-ए-इश्क़ से नहीं डरता मगर असद ; जिस दिल पे नाज़ था मुझे, वो दिल नहीं रहा। |
मिलकर जुदा हुए... मिलकर जुदा हुए तो न सोया करेंगे हम; एक दूसरे की याद में रोया करेंगे हम; आँसू छलक छलक के सतायेंगे रात भर; मोती पलक पलक में पिरोया करेंगे हम; जब दूरियों की आग दिलों को जलायेगी; जिस्मों को चाँदनी में भिगोया करेंगे हम; गर दे गया दग़ा हमें तूफ़ान भी 'क़तील'; साहिल पे कश्तियों को डूबोया करेंगे हम। |
तन्हा तन्हा हम... तन्हा तन्हा हम रो लेंगे महफ़िल महफ़िल गायेंगे; जब तक आँसू पास रहेंगे तब तक गीत सुनायेंगे; तुम जो सोचो वो तुम जानो हम तो अपनी कहते हैं; देर न करना घर जाने में वरना घर खो जायेंगे; बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो; चार किताबें पढ़ कर वो भी हम जैसे हो जायेंगे; किन राहों से दूर है मंज़िल कौन सा रस्ता आसाँ है; हम जब थक कर रुक जायेंगे औरों को समझायेंगे; अच्छी सूरत वाले सारे पत्थर-दिल हो मुम्किन है; हम तो उस दिन राए देंगे जिस दिन धोका खायेंगे। |
कोई उस शहर में... कोई उस शहर में कब था उसका; उसे यह ज़ो'म कि रब था उसका; उसकी रग-रग में उतरती रही आग; उसके अंदर ही ग़ज़ब था उसका; वही सिलसिला-ए-तार-ए-नफ़स; वही जीने का सबब था उसका; सिद्क़-जदा था वो शहज़ादा कमाल; बस यही नाम-ओ-नसब था उसका। Translation: ज़ो'म= गर्व सिद्क़= सच |
ये चाँदनी भी जिन को... ये चाँदनी भी जिन को छूते हुए डरती है; दुनिया उन्हीं फूलों को पैरों से मसलती है; शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमशा है; जिस डाल पर बैठे हो वो टूट भी सकती है; लोबान में चिंगारी जैसे कोई रख दे; यूँ याद तेरी शब भर सीने में सुलगती है; आ जाता है ख़ुद खींच कर दिल सीने से पटरी पर; जब रात की सरहद से इक रेल गुज़रती है; आँसू कभी पलकों पर तो देर तक नहीं रुकते; उड़ जाते हैं वे पंछी जब शाख़ लचकती है; ख़ुश रंग परिंदों के लौट आने के दिन आये; बिछड़े हुए मिलते हैं जब बर्फ़ पिघलती है। |
मुझ से पहली सी मोहब्बत... मुझ से पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब न माँग; मैंने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात; तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है; तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात; तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है; तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है; तू जो मिल जाये तो तक़दीर निगूँ हो जाये; यूँ न था मैं ने फ़क़त चाहा था यूँ हो जाये; और भी दुःख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा; राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा। |