और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा; राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा! x |
जुस्तुजू जिस की थी उस को तो न पाया हम ने; इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हम ने! |
क्या खूब मजबूरियां थी मेरी भी, अपनी ख़ुशी को छोड़ दिया उसे खुश देखने के लिए! |
मुझे लगता है नाराज़गी अब भी बाकी है; हाथ थामा तो उसने दबाया नहीं! |
माना मौसम भी बदलते हैं मगर धीरे-धीरे; पर दोस्त तेरे बदलने की रफ़्तार से तो हवाएं भी हैरान हैं! |
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ; आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ! |
कौन कहता है हम झूठ नहीं बोलते; एक बार खैरियत तो पूछ कर देखिये! |
बहुत अंदर तक जला देती हैं; वो शिकायतें जो बयां नहीं होती! |
राज़ मेरे पहुँच गए हैं गैरों तक; मशवरा तो मैंने अपनों से किया था! |
बहुत कम बोलना अब कर दिया है; कई मौक़ों पे ग़ुस्सा भी पिया है! |