अंगड़ाई भी वो लेने न पाए उठा के हाथ; देखा जो मुझ को छोड़ दिए मुस्कुरा के हाथ! |
कल उस सनम के कूचे से निकला जो शैख़-ए-वक़्त; कहते थे सब इधर से अजब बरहमन गया! *शैख़-ए-वक़्त: अपने समय का सबसे बड़ा धर्मगुरु *बरहमन: ब्राह्मण |
यहाँ हर किसी को दरारों में झाँकने की आदत है, दरवाजे खोल दो, कोई पूछने भी नहीं आएगा। |
उम्र गुज़रेगी इम्तिहान में क्या, दाग़ ही देंगे मुझ को दान में क्या; मेरी हर बात बे-असर ही रही, नक़्स है कुछ मेरे बयान में क्या! |
तुम्हारे ख़त में नया एक सलाम किस का था, |
सुला कर तेज़ धारों को किनारो तुम न सो जाना; रवानी ज़िंदगानी है तो धारो तुम न सो जाना! |
हम को किस के गम ने मारा ये कहानी फिर सही; किस ने तोडा ये दिल हमारा ये कहानी फिर सही! |
वही कारवाँ वही रास्ते वही ज़िंदगी वही मरहले; मगर अपने अपने मक़ाम पर कभी तुम नहीं कभी हम नहीं! |
दिन रात मय-कदे में गुज़रती थी ज़िंदगी; 'अख़्तर' वो बे-ख़ुदी के ज़माने किधर गए! *मय-कदे: शराबख़ाना |
चार दिन की ज़िन्दगी, मैं किस से कतरा के चलूँ, ख़ाक़ हूँ, मैं ख़ाक़ पर, क्या ख़ाक़ इतरा के चलूँ! |