न कर 'सौदा' तू शिकवा हम से दिल की बे-क़रारी का; मोहब्बत किस को देती है मियाँ आराम दुनिया में! |
कुछ मोहब्बत को न था चैन से रखना मंज़ूर; और कुछ उन की इनायात ने जीने न दिया! |
एक बोसे के भी नसीब न हों; होंठ इतने भी अब ग़रीब न हों! *बोसे: चुम्बन |
जब से तूने मुझे दीवाना बना रखा है, संग हर शख़्स ने हाथों में उठा रखा है; उस के दिल पर भी कड़ी इश्क़ में गुज़री होगी, नाम जिस ने भी मोहब्बत का सज़ा रखा है! |
हम को न मिल सका तो फ़क़त इक सुकून-ए-दिल; ऐ ज़िंदगी वगरना ज़माने में क्या न था! *फ़क़त: केवल |
ग़ैरों से तो फ़ुर्सत तुम्हें दिन रात नहीं है; हाँ मेरे लिए वक़्त-ए-मुलाक़ात नहीं है! |
ये अदा-ए-बे-नियाज़ी तुझे बेवफ़ा मुबारक; मगर ऐसी बे-रुख़ी क्या कि सलाम तक न पहुँचे! *अदा-ए-बे-नियाज़ी: लापरवाही की हवा |
अंगड़ाई भी वो लेने न पाए उठा के हाथ; देखा जो मुझ को छोड़ दिए मुस्कुरा के हाथ! |
कल उस सनम के कूचे से निकला जो शैख़-ए-वक़्त; कहते थे सब इधर से अजब बरहमन गया! *शैख़-ए-वक़्त: अपने समय का सबसे बड़ा धर्मगुरु *बरहमन: ब्राह्मण |
यहाँ हर किसी को दरारों में झाँकने की आदत है, दरवाजे खोल दो, कोई पूछने भी नहीं आएगा। |