और इस से पहले कि साबित हो जुर्म-ए-ख़ामोशी; हम अपनी राय का इज़हार करना चाहते हैं! |
कभी मेरी तलब कच्चे घड़े पर पार उतरती है; कभी महफ़ूज़ कश्ती में सफ़र करने से डरता हूँ! |
दिल की तकलीफ़ कम नहीं करते; अब कोई शिकवा हम नहीं करते! |
उसे बेचैन कर जाऊँगा मैं भी; ख़मोशी से गुज़र जाऊँगा मैं भी! |
झूठ वाले कहीं से कहीं बढ़ गए; और मैं था कि सच बोलता रह गया! |
ऐ दिल-ए-बे-क़रार चुप हो जा; जा चुकी है बहार चुप हो जा! |
शायरी झूठ सही इश्क़ फ़साना ही सही; ज़िंदा रहने के लिए कोई बहाना ही सही! |
ये सुब्ह की सफ़ेदियाँ ये दोपहर की ज़र्दियाँ; अब आईने में देखता हूँ मैं कहाँ चला गया! |
एक ऐसा भी वक़्त होता है; मुस्कुराहट भी आह होती है! |
उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में; फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते! |