इतना गया हूँ दूर मैं ख़ुद से कि दम-ब-दम; करनी पड़े है अपनी भी अब इल्तिजा मुझे! *दम-ब-दम: बार बार |
लोग नज़रों को भी पढ़ लेते हैं; अपनी आँखों को झुकाए रखना; |
दुआ को हाथ उठाते हुए लरज़ता हूँ; कभी दुआ नहीं माँगी थी माँ के होते हुए! *लरज़ता: Waver, Shake, Quiver |
उस को देखा तो ये महसूस हुआ; हम बहुत दूर थे ख़ुद से पहले! |
दूर तक छाए थे बादल और कहीं साया न था; इस तरह बरसात का मौसम कभी आया न था! |
समेट ले गए सब रहमतें कहाँ मेहमान; मकान काटता फिरता है मेज़बानों को! |
हम इंतज़ार करें हम को इतनी ताब नहीं; पिला दो तुम हमें पानी अगर शराब नहीं! |
ये धूप तो हर रुख़ से परेशान करेगी; क्यों ढूँढ रहे हो किसी दीवार का साया! |
इस भरोसे पे कर रहा हूँ गुनाह; बख़्श देना तो तेरी फ़ितरत है! |
ज़ुबान दिल की हक़ीक़त को क्या बयाँ करती; किसी का हाल किसी से कहा नहीं जाता! |