खामोश बैठे हैं तो लोग कहते हैं उदासी अच्छी नही; और ज़रा सा हंस लें तो लोग मुस्कुराने की वजह पूछ लेते है। |
क्यों मुझसे तुम दूर-दूर सा रहते हो; अपने हुस्न पर मगरूर सा रहते हो; प्यार की कसमों के राजदार थे कभी; अब बेवफा बनकर हुजूर सा रहते हो! |
मुद्दतें गुजरी हैं हमको करीब आए हुए; रात है बेचैन शमा प्यार की जलाए हुए; बिखरी हुई हैं साँसों में तेरी ख्वाहिशें; मेरी नज़रों में ख्वाब हैं मुस्कुराए हुए! |
आए कुछ अब्र कुछ शराब आए; उस के बाद आए जो अज़ाब आए! अब्र: बादल, अज़ाब: दुख़, संकट, विपदा |
दम भर मेरे पहलू में उन्हें चैन कहाँ है; बैठे कि बहाने से किसी काम से उठे! पहलू: पसली, (पास) |
मोहबबत में नहीं है फ़र्क जी ने और मरने का; उसी को देख कर जीते हैं जिस क़ाफ़िर पे दम निकले! |
दम भर मेरे पहलू में उन्हें चैन कहाँ है; बैठे, कि बहाने से किसी काम से उठे! |
मेहरबानी को मोहब्बत नहीं कहते ऐ दोस्त; आह अब मुझ से तेरी रंजिश-ए-बेजा भी नहीं! |
तेरी राह-ए-तलब में ज़ख़्म सब सीने पे खाये है; बहार-ए-ग़ुलिस्तां मेरी हयात-ए-जावेदाँ मेरी! |
भूले हैं रफ़्ता रफ़्ता उन्हें मु्द्दतों में हम; किश्तों में ख़ुदकुशी का मज़ा हम से पूछिये! |