गिला शिकवा Hindi Shayari

  • बना कर फ़क़ीरों का हम भेस ग़ालिब;<br/>
तमाशा-ए-अहल-ए-करम देख़ते हैं!
Upload to Facebook
    बना कर फ़क़ीरों का हम भेस ग़ालिब;
    तमाशा-ए-अहल-ए-करम देख़ते हैं!
    ~ Mirza Ghalib
  • उठकर तो आ गये हैं तेरी बज़्म से मगर;<br/>
कुछ दिल ही जानता है कि किस दिल से आये हैं!
Upload to Facebook
    उठकर तो आ गये हैं तेरी बज़्म से मगर;
    कुछ दिल ही जानता है कि किस दिल से आये हैं!
    ~ Faiz Ahmad Faiz
  • पूरा भी हो के जो कभी पूरा ना हो सका;<br/>
तेरी निगाह का वो तक़ाज़ा है आज तक!
Upload to Facebook
    पूरा भी हो के जो कभी पूरा ना हो सका;
    तेरी निगाह का वो तक़ाज़ा है आज तक!
    ~ Firaq Gorakhpuri
  • हर शख्स गुनाहगार है कुदरत के कत्ल में;<br/>
ये हवाएं जहरीली यूँ ही नहीं हुई!Upload to Facebook
    हर शख्स गुनाहगार है कुदरत के कत्ल में;
    ये हवाएं जहरीली यूँ ही नहीं हुई!
  • तेरी महफ़िल से उठे तो किसी को खबर तक ना थी;<br/>
तेरा मुड़-मुड़ कर देखना हमें बदनाम कर गया!
Upload to Facebook
    तेरी महफ़िल से उठे तो किसी को खबर तक ना थी;
    तेरा मुड़-मुड़ कर देखना हमें बदनाम कर गया!
  • बाग़ में ले के जन्म हम ने असीरी झेली;<br/>
हम से अच्छे रहे जंगल में जो आज़ाद रहे!
Upload to Facebook
    बाग़ में ले के जन्म हम ने असीरी झेली;
    हम से अच्छे रहे जंगल में जो आज़ाद रहे!
    ~ Brij Narayan Chakbast
  • ख़ुदी वो बहर है जिस का कोई किनारा नहीं;<br/>
तू आबजू इसे समझा अगर तो चारा नहीं! Upload to Facebook
    ख़ुदी वो बहर है जिस का कोई किनारा नहीं;
    तू आबजू इसे समझा अगर तो चारा नहीं!
    ~ Allama Iqbal
  • मेरी फितरत को क्या समझेंगे ये ख्वाब-ए-गर्दाँ वाले;<br/>
सवेरे के सितारे की चमक है राज़दाँ मेरी!Upload to Facebook
    मेरी फितरत को क्या समझेंगे ये ख्वाब-ए-गर्दाँ वाले;
    सवेरे के सितारे की चमक है राज़दाँ मेरी!
    ~ Shamsi Meenai
  • अच्छा है दिल के साथ रहे पासबान-ए-अक़्ल;<br/>
लेकिन कभी-कभी इसे तन्हा भी छोड़ दे!<br/><br/>
पासबान-ए-अक़्ल: बुद्धी का निरीक्षक, Guardian of the mind, Intution Upload to Facebook
    अच्छा है दिल के साथ रहे पासबान-ए-अक़्ल;
    लेकिन कभी-कभी इसे तन्हा भी छोड़ दे!

    पासबान-ए-अक़्ल: बुद्धी का निरीक्षक, Guardian of the mind, Intution
    ~ Allama Iqbal
  • दर पे रहने को कहा और कह के कैसा फिर गया;<br/>
जितने अर्से में मेरा लिपटा हुआ बिस्तर खुला!Upload to Facebook
    दर पे रहने को कहा और कह के कैसा फिर गया;
    जितने अर्से में मेरा लिपटा हुआ बिस्तर खुला!
    ~ Mirza Ghalib