अपनी तबाहियों का मुझे कोई गम नहीं; तुमने किसी के साथ मोहब्बत निभा तो दी। |
दिल की बस्ती अजीब बस्ती है; लूटने वाले को तरसती है। |
मैं अकेला ही चला था जानिबे-मंजिल मगर; लोग आते गए और कारवां बनता गया। |
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक; कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक। Meaning: सर - सुलझाना |
अपनी गली में मुझ को न कर दफ़्न बाद-ए-क़त्ल; मेरे पते से ख़ल्क़ को क्यों तेरा घर मिले। |
दुनिया करे सवाल तो हम क्या जवाब दें; तुमको ना हो ख्याल तो हम क्या जवाब दें। |
बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना; आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना। |
सजा कैसी मिली मुझको तुमसे दिल लगाने की; रोना ही पड़ा है जब कोशिश की मुस्कुराने की; कौन बनेगा यहाँ मेरी दर्द-भरी रातों का हमराज; दर्द ही मिला जो तुमने कोशिश की आजमाने की। |
कहाँ वह खल्वतें दिन-रात की और अब यह आलम है; कि जब मिलते हैं दिल कहता है, कोई तीसरा होता। अर्थ: 1. खल्वतें - एकान्त, जहाँ दूसरा न हो, तन्हाई 2.आलम - हालत, दशा, स्थिति |
कारगाहे-हयात में ऐ दोस्त यह हकीकत मुझे नजर आई; हर उजाले में तीरगी देखी, हर अंधेरे में रौशनी पाई। Meaning: 1. कारगाहे - कार्यालय, कार्य करने का स्थान 2. तीरगी - अंधेरा, अँधियारा। |