एक मंज़िल है मगर राह कई हैं 'अज़हर'; सोचना ये है कि जाओगे किधर से पहले! |
ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया; झूठी क़सम से आप का ईमान तो गया! |
मैं अब किसी की भी उम्मीद तोड़ सकता हूँ; मुझे किसी पे भी अब कोई ऐतबार नहीं! |
मुझ से बिछड़ के तू भी तो रोएगा उम्र भर; ये सोच ले कि मैं भी तेरी ख़्वाहिशों में हूँ! |
इतना गया हूँ दूर मैं ख़ुद से कि दम-ब-दम; करनी पड़े है अपनी भी अब इल्तिजा मुझे! *दम-ब-दम: बार बार |
हम ने देखा है ज़माने का बदलना लेकिन; उनके बदले हुए तेवर नहीं देखे जाते! |
आदतन तुम ने कर दिए वादे; आदतन हम ने ए'तिबार किया! |
मेरी ज़िंदगी पे न मुस्कुरा मुझे ज़िंदगी का इल्म नहीं; जिसे तेरे ग़म से हो वास्ता वो ख़िज़ाँ बहार से कम नहीं! * ख़िज़ाँ: पतझड़ |
कैसे कहें कि तुझ को भी हम से है वास्ता कोई; तूने तो हम से आज तक कोई गिला नहीं किया! |
तू भी सादा है कभी चाल बदलता ही नहीं; हम भी सादा हैं इसी चाल में आ जाते हैं! |