यही हालात इब्तिदा से रहे; लोग हम से ख़फ़ा ख़फ़ा से रहे! * इब्तिदा :आरम्भ, शुरुआत। |
बेहतर तो है यही कि न दुनिया से दिल लगे; पर क्या करें जो काम न बे-दिल-लगी चले! |
या वो थे ख़फ़ा हम से, या हम हैं ख़फ़ा उन से; कल उन का ज़माना था, आज अपना ज़माना है! |
शाम तक सुब्ह की नज़रों से उतर जाते हैं; इतने समझौतों पे जीते हैं कि मर जाते हैं! |
तुम परिंदों से ज़्यादा तो नहीं हो आज़ाद; शाम होने को है अब घर की तरफ़ लौट चलो! |
इन्हीं पत्थरों पे चल कर अगर आ सको तो आओ; मेरे घर के रास्ते में कोई कहकशाँ नहीं है! *कहकशाँ: आकाशगंगा, छायापथ |
तुम्हारा हिज्र मना लूँ अगर इजाज़त हो; मैं दिल किसी से लगा लूँ अगर इजाज़त हो! *हिज्र- जुदाई, वियोग, विछोह, विरह |
इन चिराग़ों में तेल ही कम था; क्यों गिला फिर हमें हवा से रहे! |
हालात से ख़ौफ़ खा रहा हूँ; शीशे के महल बना रहा हूँ! |
ऐ ग़म-ए-ज़िंदगी न हो नाराज़; मुझ को आदत है मुस्कुराने की! |