गिला शिकवा Hindi Shayari

  • यही हालात इब्तिदा से रहे;<br />
लोग हम से ख़फ़ा ख़फ़ा से रहे!<br /><br />
* इब्तिदा :आरम्भ, शुरुआत।
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    यही हालात इब्तिदा से रहे;
    लोग हम से ख़फ़ा ख़फ़ा से रहे!

    * इब्तिदा :आरम्भ, शुरुआत।
    ~ Javed Akhtar
  • बेहतर तो है यही कि न दुनिया से दिल लगे;<br/>
पर क्या करें जो काम न बे-दिल-लगी चले!Upload to Facebook
    बेहतर तो है यही कि न दुनिया से दिल लगे;
    पर क्या करें जो काम न बे-दिल-लगी चले!
    ~ Sheikh Ibrahim Zauq
  • या वो थे ख़फ़ा हम से, या हम हैं ख़फ़ा उन से;<br/>
कल उन का ज़माना था, आज अपना ज़माना है!Upload to Facebook
    या वो थे ख़फ़ा हम से, या हम हैं ख़फ़ा उन से;
    कल उन का ज़माना था, आज अपना ज़माना है!
    ~ Jigar Moradabadi
  • शाम तक सुब्ह की नज़रों से उतर जाते हैं;<br/>
इतने समझौतों पे जीते हैं कि मर जाते हैं!Upload to Facebook
    शाम तक सुब्ह की नज़रों से उतर जाते हैं;
    इतने समझौतों पे जीते हैं कि मर जाते हैं!
    ~ Wasim Barelvi
  • तुम परिंदों से ज़्यादा तो नहीं हो आज़ाद;<br/>
शाम होने को है अब घर की तरफ़ लौट चलो!Upload to Facebook
    तुम परिंदों से ज़्यादा तो नहीं हो आज़ाद;
    शाम होने को है अब घर की तरफ़ लौट चलो!
    ~ Irfan Siddiqi
  • इन्हीं पत्थरों पे चल कर अगर आ सको तो आओ;<br/>
मेरे घर के रास्ते में कोई कहकशाँ नहीं है!<br/><br/>
*कहकशाँ: आकाशगंगा, छायापथUpload to Facebook
    इन्हीं पत्थरों पे चल कर अगर आ सको तो आओ;
    मेरे घर के रास्ते में कोई कहकशाँ नहीं है!

    *कहकशाँ: आकाशगंगा, छायापथ
    ~ Mustafa Zaidi
  • तुम्हारा हिज्र मना लूँ अगर इजाज़त हो;<br/>
मैं दिल किसी से लगा लूँ अगर इजाज़त हो!<br/><br/>
*हिज्र- जुदाई, वियोग, विछोह, विरहUpload to Facebook
    तुम्हारा हिज्र मना लूँ अगर इजाज़त हो;
    मैं दिल किसी से लगा लूँ अगर इजाज़त हो!

    *हिज्र- जुदाई, वियोग, विछोह, विरह
    ~ Jaun Elia
  • इन चिराग़ों में तेल ही कम था;<br/>
क्यों गिला फिर हमें हवा से रहे!Upload to Facebook
    इन चिराग़ों में तेल ही कम था;
    क्यों गिला फिर हमें हवा से रहे!
    ~ Javed Akhtar
  • हालात से ख़ौफ़ खा रहा हूँ;<br/>
शीशे के महल बना रहा हूँ!Upload to Facebook
    हालात से ख़ौफ़ खा रहा हूँ;
    शीशे के महल बना रहा हूँ!
    ~ Qateel Shifai
  • ऐ ग़म-ए-ज़िंदगी न हो नाराज़;<br/>
मुझ को आदत है मुस्कुराने की!Upload to Facebook
    ऐ ग़म-ए-ज़िंदगी न हो नाराज़;
    मुझ को आदत है मुस्कुराने की!
    ~ Abdul Hamid Adam