कोई लम्हा हो तेरे साथ का, जो मेरी उम्र भर को समेट दे; मैं फ़ना बक़ा के सभी सफ़र, उसी एक पल में गुज़ार दूँ! |
जाती है धूप उजले परों को समेट के, ज़ख़्मों को अब गिनूँगा मैं बिस्तर पे लेट के| |
जाने किन रिश्तों ने मुझ को बाँध रखा है कि मैं; मुद्दतों से आँधियों की ज़द में हूँ बिखरा नहीं! |
दिल के फफूले जल उठे सीने के दाग़ से; इस घर को आग लग गई घर के चिराग से! *फफूले: छाले |
कभी तो सुब्ह तेरे कुंज-ए-लब से हो आग़ाज़, कभी तो शब सर-ए-काकुल से मुश्क-बार चले; बड़ा है दर्द का रिश्ता ये दिल ग़रीब सही, तुम्हारे नाम पे आएँगे ग़म-गुसार चले! *कुंज-ए-लब: मुंह, मुंह का कोना *सर-ए-काकुल: बाल |
हमारे ख़त के तो पुर्ज़े किए पढ़ा भी नहीं, सुना जो तूने ब-दिल वो पयाम किस का था; उठाई क्यों न क़यामत अदू के कूचे में, लिहाज़ आप को वक़्त-ए-ख़िराम किस का था! *पुर्ज़े: टुकड़े टुकड़े *ब-दिल: दिल से *पयाम: संदेश *अदू: शत्रु *कूचे: गलियाँ |
जिस दिन से चला हूँ मेरी मंज़िल पे नज़र है, आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा; ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं, तुम ने मेरा काँटों भरा बिस्तर नहीं देखा! |
रहा न दिल में वो बेदर्द और दर्द रहा, मुक़ीम कौन हुआ है मक़ाम किस का था; न पूछ-गछ थी किसी की वहाँ न आव-भगत, तुम्हारी बज़्म में कल एहतिमाम किस का था! *बज़्म: सभा *मुश्ताक़: शौक़ रखने वाला |
किसी की शाम-ए-सादगी सहर का रंग पा गई, सबा के पाँव थक गए मगर बहार आ गई; चमन की जश्न-गाह में उदासियाँ भी कम न थीं, जली जो कोई शम-ए-गुल कली का दिल बुझा गई! |
ख़्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता है; ऐसी तन्हाई कि मर जाने को जी चाहता है! |