दर्द Hindi Shayari

  • दर्द का फिर मज़ा है जब 'अख़्तर';</br>
दर्द ख़ुद चारा साज़ हो जाए!</br>
*अख़्तर: तारा, सितारा, क़िस्मतUpload to Facebook
    दर्द का फिर मज़ा है जब 'अख़्तर';
    दर्द ख़ुद चारा साज़ हो जाए!
    *अख़्तर: तारा, सितारा, क़िस्मत
    ~ Aleem Akhtar
  • दिल सरापा दर्द था वो इब्तिदा-ए-इश्क़ थी;</br>
इंतेहा ये है कि 'फ़ानी' दर्द अब दिल हो गया!Upload to Facebook
    दिल सरापा दर्द था वो इब्तिदा-ए-इश्क़ थी;
    इंतेहा ये है कि 'फ़ानी' दर्द अब दिल हो गया!
    ~ Fani Badayuni
  • एक महफ़िल में कई महफ़िलें होती हैं शरीक;</br>
जिस को भी पास से देखोगे अकेला होगा!Upload to Facebook
    एक महफ़िल में कई महफ़िलें होती हैं शरीक;
    जिस को भी पास से देखोगे अकेला होगा!
    ~ Nida Fazli
  • चल साथ कि हसरत दिल-ए-मरहूम से निकले,</br>
आशिक़ का जनाज़ा है, ज़रा धूम से निकले।Upload to Facebook
    चल साथ कि हसरत दिल-ए-मरहूम से निकले,
    आशिक़ का जनाज़ा है, ज़रा धूम से निकले।
  • न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा;</br>
हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा!Upload to Facebook
    न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा;
    हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा!
    ~ Rahat Indori
  • उस को रुख़्सत तो किया था मुझे मालूम न था;
सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला!
*रुख़्सत:बिछड़नाUpload to Facebook
    उस को रुख़्सत तो किया था मुझे मालूम न था; सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला! *रुख़्सत:बिछड़ना
    ~ Nida Fazli
  • दर्द का ज़ायका बताऊँ क्या;</br>
ये इलाक़ा ज़ुबाँ से बाहर है!Upload to Facebook
    दर्द का ज़ायका बताऊँ क्या;
    ये इलाक़ा ज़ुबाँ से बाहर है!
    ~ Khursheed Akbar
  • किस दर्जा दिल-शिकन थे मोहब्बत के हादसे;</br>
हम ज़िंदगी में फिर कोई अरमाँ न कर सके!Upload to Facebook
    किस दर्जा दिल-शिकन थे मोहब्बत के हादसे;
    हम ज़िंदगी में फिर कोई अरमाँ न कर सके!
    ~ Sahir Ludhianvi
  • जो लोग मौत को ज़ालिम क़रार देते हैं;</br>
ख़ुदा मिलाए उन्हें ज़िंदगी के मारों से!Upload to Facebook
    जो लोग मौत को ज़ालिम क़रार देते हैं;
    ख़ुदा मिलाए उन्हें ज़िंदगी के मारों से!
    ~ Nazeer Siddiqui
  • आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब,</br>
दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होते तक;</br>
ता-क़यामत शब-ए-फ़ुर्क़त में गुज़र जाएगी उम्र,</br>
सात दिन हम पे भी भारी हैं सहर होते तक!
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    आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब,
    दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होते तक;
    ता-क़यामत शब-ए-फ़ुर्क़त में गुज़र जाएगी उम्र,
    सात दिन हम पे भी भारी हैं सहर होते तक!
    ~ Mirza Ghalib, *सब्र-तलब: जिसमें सब्र और धैर्य की आवश्यकता हो
    *शब-ए-फ़ुर्क़त: जुदाई की रात