अगर बदल न दिया आदमी ने दुनिया को; तो जान लो कि यहाँ आदमी की ख़ैर नहीं! |
पत्थर के जिगर वालो ग़म में वो रवानी है; ख़ुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है! |
सवाल करती कई आँखें मुंतज़िर हैं यहाँ; जवाब आज भी हम सोच कर नहीं आए! |
अपने होने का कुछ एहसास न होने से हुआ; ख़ुद से मिलना मेरा एक शख़्स के खोने से हुआ! |
दूर तक फैला हुआ पानी ही पानी हर तरफ़; अब के बादल ने बहुत की मेहरबानी हर तरफ़! |
पहाड़ काटने वाले ज़मीन से हार गए; इसी ज़मीन में दरिया समाए हैं क्या क्या! |
आज फिर मुझ से कहा दरिया ने; क्या इरादा है बहा ले जाऊँ! |
अब इस घर की आबादी मेहमानों पर है; कोई आ जाए तो वक़्त गुज़र जाता है! |
आसमानों से फ़रिश्ते जो उतारे जाएँ; वो भी इस दौर में सच बोलें तो मारे जाएँ! |
हैरान मत हो तैरती मछली को देख कर; पानी में रौशनी को उतरते हुए भी देख! |