हर कोई मिलता है यहाँ पहन सच का नक़ाब; मुश्किल है पहचान पाना यहाँ कौन अच्छा है कौन ख़राब। |
कब तक रह पाओगे आखिर यूँ दूर हम से; मिलना पड़ेगा आखिर कभी ज़रूर हम से; नज़रें चुराने वाले ये बेरुखी है कैसी; कह दो अगर हुआ है कोई कसूर हम से। |
अब उस की शक्ल भी मुश्किल से याद आती है; वो जिस के नाम से होते न थे जुदा मेरे लब। |
मेरी ख़बर तो किसी को नहीं मगर 'अख़्तर'; ज़माना अपने लिए होशियार कैसा है। |
ज़िंदा रहे तो क्या है, जो मर जाएं हम तो क्या; दुनिया से ख़ामोशी से गुज़र जाएं हम तो क्या; हस्ती ही अपनी क्या है ज़माने के सामने; एक ख्वाब हैं जहान में बिखर जायें हम तो क्या। |
उन से कह दो मुझे ख़ामोश ही रहने दे 'वसीम'; लब पे आएगी तो हर बात गिराँ गुज़रेगी। |
भूल गए वो यह कि उन्हें हसाया किसने था; जब वो रूठे थे तो मनाया किसने था; वो कहते हैं वो बहुत अच्छे है शायद; वो भूल गए कि उन्हें यह बताया किसने था। |
तू कहाँ जाएगी कुछ अपना ठिकाना करने; हम तो कल ख़्वाब-ए-अदम में शब-ए-हिज्राँ होंगे। |
मेरी कबर पे वो रोने आये हैं; हम से प्यार है ये कहने आये हैं; जब ज़िंदा थे तो रुलाया बहुत; अब आराम से सोये हैं तो जगाने आये हैं। |
मतलबी दुनिया के लोग खड़े हैं हाथों में पत्थर लेकर; मैं कहाँ तक भागूं शीशे का मुक़द्दर लेकर। |