नया एक रिश्ता पैदा क्यों करें हम, बिछड़ना है तो झगड़ा क्यों करें हम; ख़मोशी से अदा हो रस्म-ए-दूरी, कोई हंगामा बरपा क्यों करें हम! *बरपा: होना |
अब तो चुप-चाप शाम आती है; पहले चिड़ियों के शोर होते थे! |
वो सादगी में भी है अजब दिलकशी लिए; इस वास्ते हम उस की तमन्ना में जी लिए! |
सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं, सो उस के शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं; सुना है रब्त है उस को ख़राब-हालों से, सो अपने आप को बरबाद कर के देखते हैं! *रब्त: लगाव *ख़राब-हालों: जिनकी हालत खराब है |
वो ज़हर देता तो सब की निगह में आ जाता; सो ये किया कि मुझे वक़्त पे दवाएँ न दीं! |
जब से छूटा है गुलिस्ताँ हम से; रोज़ सुनते हैं बहार आई है! *गुलिस्ताँ: फूलों का बगीचा |
परेशाँ रात सारी है सितारो तुम तो सो जाओ, सुकूत-ए-मर्ग तारी है सितारो तुम तो सो जाओ; हँसो और हँसते हँसते डूबते जाओ ख़लाओं में, हमीं पे रात भारी है सितारो तुम तो सो जाओ! *सुकूत-ए-मर्ग: मौत की चुप्पी *ख़लाओं: आकाश |
ये इल्म का सौदा ये रिसाले ये किताबें; इक शख़्स की यादों को भुलाने के लिए हैं! *इल्म: ज्ञान *रिसाले: पत्रिकाओं |
हमारी ही तमन्ना क्यों करो तुम; तुम्हारी ही तमन्ना क्यों करें हम! |
चाहिए क्या तुम्हें तोहफ़े में बता दो वर्ना; हम तो बाज़ार के बाज़ार उठा लाएँगे! |