हुस्न इक दिलरुबा हुकूमत है; इश्क़ इक क़ुदरती ग़ुलामी है! |
कितने ऐश से रहते होंगे कितने इतराते होंगे, जाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे; शाम हुए ख़ुश-बाश यहाँ के मेरे पास आ जाते हैं, मेरे बुझने का नज़ारा करने आ जाते होंगे! |
ये सर्द रात ये आवारगी ये नींद का बोझ; हम अपने शहर में होते तो घर गए होते! |
चली है मौज में काग़ज़ की कश्ती; उसे दरिया का अंदाज़ा नहीं है! |
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता, कहीं ज़मीन कहीं आसमाँ नहीं मिलता; तमाम शहर में ऐसा नहीं ख़ुलूस न हो, जहाँ उमीद हो इस की वहाँ नहीं मिलता! *मुकम्मल: उत्तम, पूर्ण *ख़ुलूस: निष्कपटता, निश्छलता |
जिस को तुम भूल गए याद करे कौन उस को; जिस को तुम याद हो वो और किसे याद करे! |
हाँ उन्हीं लोगों से दुनिया में शिकायत है हमें; हाँ वही लोग जो अक्सर हमें याद आए हैं! |
गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले, चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले; क़फ़स उदास है यारो सबा से कुछ तो कहो, कहीं तो बहर-ए-ख़ुदा आज ज़िक्र-ए-यार चले! *बहर-ए-ख़ुदा: ईश्वर के लिए *क़फ़स: पिंजरा, क़ैदख़ाना *सबा: हवा, सुबह की हवा |
सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो; सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो! |
आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा, कश्ती के मुसाफ़िर ने समंदर नहीं देखा; बे-वक़्त अगर जाऊँगा सब चौंक पड़ेंगे, एक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा! |