मैंने माना कि कुछ नहीं 'ग़ालिब'; मुफ़्त हाथ आए तो बुरा क्या है! |
रोने वालों से कहो उन का भी रोना रो लें; जिन को मजबूरी-ए-हालात ने रोने न दिया! |
इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ, क्यों न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएँ; तू भी हीरे से बन गया पत्थर, हम भी कल जाने क्या से क्या हो जाएँ! |
मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे पीछे; तू देख कि क्या रंग है तेरा मेरे आगे! |
गर्मी बहुत है आज खुला रख मकान को; उस की गली से रात को पुर्वाई आएगी! *पुर्वाई: पूर्व की वायु |
तुम्हारे ख़त में नया एक सलाम किस का था, न था रक़ीब तो आख़िर वो नाम किस का था; वो क़त्ल कर के मुझे हर किसी से पूछते हैं, ये काम किस ने किया है ये काम किस का था! |
मेरे हम-नफ़स मेरे हम-नवा मुझे दोस्त बन के दग़ा न दे; मैं हूँ दर्द-ए-इश्क़ से जाँ-ब-लब मुझे ज़िंदगी की दुआ न दे! मेरे दाग़-ए-दिल से है रौशनी इसी रौशनी से है ज़िंदगी; मुझे डर है ऐ मिरे चारा-गर ये चराग़ तू ही बुझा न दे! *जाँ-ब-लब: जिसके प्राण होंठों पर हों |
काँटे तो ख़ैर काँटे हैं इस का गिला ही क्या; फूलों की वारदात से घबरा के पी गया! |
दीदार की तलब के तरीक़ों से बे-ख़बर; दीदार की तलब है तो पहले निगाह माँग! |
ग़म मुझे देते हो औरों की ख़ुशी के वास्ते; क्यों बुरे बनते हो तुम नाहक़ किसी के वास्ते! *नाहक़: अनुचित रूप से और अकारण |