वो नहीं भूलता जहाँ जाऊँ; हाए मैं क्या करूँ कहाँ जाऊँ! |
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता; अगर और जीते रहते यही इंतज़ार होता! |
हम तोहफ़े में घड़ियाँ तो दे देते हैं; एक दूजे को वक़्त नहीं दे पाते हैं! |
तन्हाई का एक और मज़ा लूट रहा हूँ; मेहमान मेरे घर में बहुत आए हुए हैं! |
बदन में जैसे लहू ताज़ियाना हो गया है; उसे गले से लगाए ज़माना हो गया है! |
बिन तुम्हारे कभी नहीं आई; क्या मेरी नींद भी तुम्हारी है! |
ये ग़म नहीं है कि हम दोनों एक हो न सके; ये रंज है कि कोई दरमियान में भी न था! |
गुलशन की फ़क़त फूलों से नहीं काँटों से भी ज़ीनत होती है; जीने के लिए इस दुनिया में ग़म की भी ज़रूरत होती है! *फ़क़त: केवल *ज़ीनत: सजावट |
चिराग घर का हो महफ़िल का हो कि मंदिर का; हवा के पास कोई मस्लहत नहीं होती! *मस्लहत: भला बुरा देख कर काम करना |
पूछा जो उन से चाँद निकलता है किस तरह; ज़ुल्फ़ों को रुख़ पे डाल के झटका दिया कि यूँ! |